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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश ११७ वस्त्रशस्त्रछत्रोपानदासनशयनादिषु'शस्त्रकण्टकमूषिका- दिकृतछेददर्शनात् कालत्रयविषयलाभालाभसुखदुःखादिसूचनं छिन्नम्। (तवा ३.३६) (द्र निमित्त) छेदेन-विभागेन महाव्रतेषु उपस्थाप्यते इति-छेदोपस्थाप्यम्। (जैसिदी ६.५ वृ) छेद प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त का एक प्रकार । अपराधों का उपचय और शासनविरुद्ध समाचरण होने पर तथा तप के योग्य प्रायश्चित्त का अतिक्रमण होने पर प्रव्रज्या के जघन्य पांच दिन और उत्कृष्टत: छ: मास का छेद करना, संयमपर्याय को कम करना। छेदो अवराधोपचएण सासणविरुद्धादिसमायारेण वा तवारिहमतिक्कंतस्स पंचराइंदियादिपव्वज्जाविच्छेदणं। (आवचू २ पृ २४७) पणगाइ पणगवुड्डी, दोण्ह वि छम्मास निट्ठवणा। (बृभा ७०७) जगश्रेणी सात रज्जु प्रमाण लोकपंक्ति। १ जगश्रेणी = ७ रज्ज। लोक का आयतन = जगश्रेणी का घन = ३४३ घनरज्जु। (तरावा ३.३८) जघन्य आतापना हस्तिशुण्डिका, एकपादिका और समपादिका की खड़ी मुद्रा में लिया जाने वाला सूर्य का आतप। ऊर्ध्वस्थितस्य जघन्या"ऊर्ध्वस्थानातापनाऽपि त्रिधा हस्तिशौण्डिका एकपादिका समपादिका चेति। (औपवृ प७५) (द्र उत्कृष्ट आतापना) जघन्य गीतार्थ वह मुनि, जो आचारप्रकल्प-निशीथ का धारक होता है। आचारप्रकल्पधराः निशीथाध्ययनधारिणो जघन्या गीतार्थाः। (बृभा ६९३ वृ) जघन्य चिरप्रव्रजित वह मुनि, जो तीन वर्षों से दीक्षित है। त्रिवर्षप्रवजितो जघन्यश्चिरप्रव्रजितः। (बृभा ४०३ वृ) जघन्य बहुश्रुत छेदसूत्र निशीथ, व्यवहार, कल्प और दशा । - ग्रंथों में सात पदों की व्यवस्था, आचार के विधि-निषेध और प्रायश्चित्त की विधियों का निर्देश है। """आयरिए वा उवज्झाए वा पवत्ती वा थेरे वा गणी वा गणहरे वा गणावच्छेइए वा ॥ (क ३.१३) छेदसुयं"जम्हा एत्थ सपायच्छित्तो विधी भण्णति, जम्हा य तेण चरणविसुद्धी करेति, तम्हा तं उत्तमसुतं।। (निभा ६१८४ चू पृ २५३) कप्प-ववहार-कप्पियाकप्पिय-चल्लकप्प-महाकप्पसुय-निसीहाइएसु छेदसुत्तेसु अइवित्थरेण पच्छित्तं भणियं। (जीचू पृ१) छेदोपस्थापनीय कल्पस्थिति छेदोपस्थापनीय चारित्र वाले साधओं की कल्प-मर्यादा। (स्था ६.१०३) छेदोपस्थापनीय चारित्र (द्र छेदोपस्थाप्य चारित्र) छेदोपस्थाप्य चारित्र वह चारित्र, जिसमें सामायिक चारित्र के पर्याय का छेद और विभागपूर्वक महाव्रतों की उपस्थापना की जाती है। (बृभा ४०२) (द्र जघन्य गीतार्थ) जङ्घाचारण चारण ऋद्ध का एक प्रकार। वह मुनि, जो भूमि से चार अंगुल ऊपर शीघ्रता से सैकड़ों योजन गमन करने की लब्धि से सम्पन्न होता है। भुव उपर्याकाशे चतुरङ्गुलप्रमाणे जङ्घोत्क्षेपनिक्षेपशीघ्रकरणपटवो बहुयोजनशताशुगमनप्रवणा जङ्घाचारणाः। (तवा ३.३६) जनपद सत्य सत्य का एक प्रकार। किसी एक जनपद में रूढ शब्द का www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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