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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश ११९ है। जागरिका-प्रबोधः। (भग १२.२० वृ) उत्कर्षतः पूर्ववर्तीनि नवसंज्ञिजन्मानि ज्ञातुं शक्यानि। जाता परिषद् (आभा पृ २२) इन्द्र की परिषद् का एक प्रकार। बाह्य परिषद, जिसके 'सरति' त्ति स्मरति पौराणिकी जाति-जन्म। सदस्य इन्द्र के द्वारा बुलाये बिना ही आ जाते हैं। (उ १९.८ शावृ प ४५२) ""बाहिरिता जाया। जात्युत्तर ये त्वनाहूता अप्यागच्छन्ति सा बाह्या। वाद में अविद्यमान दोषों का उद्भावन करना। (स्था ३.१४३ वृप १२२) अभूतदोषोद्भावनानि दूषणाभासा जात्युत्तराणि। (द्र चण्डा परिषद्, समिता परिषद्) (प्रमी २.२९) जातिनाम (द्र वाद) नाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव एकेन्द्रिय जितनिद्र आदि जाति को प्राप्त होता है। इन्द्रियों के आधार पर होने वह मुनि, जो अल्प निद्रा वाला होता है, रात्रि में सूत्र और वाले जीवों के विभाग। अर्थ का चिंतन करता हुआ नींद से बाधित नहीं होता। एकेन्द्रियादीनामेकेन्द्रियत्वादिरूपसमानपरिणामलक्षणमेकेन्द्रिया जितनिद्रः-अल्पनिद्रः, स हि रात्रौ सूत्रमर्थं वा परिभावयन दिशब्दव्यपदेशभाक् यत्सामान्यं सा जातिस्तजनकं नाम न निद्रया बाध्यते। (प्रसावृ प १३१) जातिनाम। (प्रज्ञा २३.४० वृप ४६९) जितेन्द्रिय जातिनामनिधत्तायु वह साधक, जिसने श्रोत्र आदि इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की आयुबंध का एक प्रकार । एकेन्द्रिय आद पांच जातिनाम कर्म के साथ होने वाला आयु का निषेचन । जिइंदिओ णाम जिताणि सोयाईणि इंदियाणि जेण सो एकेन्द्रियजात्यादिः पञ्चप्रकारा सैव नाम-नामकर्मण जिइंदिओ। (द ९.३.१३ जिचू पृ २८५) उत्तर-प्रकृतिविशेषरूपं जातिनाम तेन सह निधत्तं निषिक्तं यदा-युस्तजातिनामनिधत्तायुः। (प्रज्ञा ६.११८ वृ प २१७) १. तीर्थंकर। जातिसम्पन्न ..."धम्मतित्थयरे जिणे। (आव २.१) उत्तम मातपक्ष वाला, जो प्रायः अकरणीय कार्य नहीं करता. (द्र जैन) कदाचित् हो जाए तो उसका शोधन कर लेता है। २. सामान्यकेवली। जातिकुलसम्पन्नः प्रायः किंचिदकृत्यं न सेवते, आसेव्य च जिनाः सामान्यकेवलिनः। (बृभा १११४ वृ) पश्चात् तद्गुणतः सम्यगालोचयेत्। ३. अतीन्द्रियज्ञानी। (स्था ८.१९ वृ प ४०२) तओ जिणा पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणजिणे, मणपज्जजातिस्थविर वणाणजिणे, केवलणाणजिणे। (स्था ३.५१२) साठ वर्षों की अवस्था वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ । ४. राग-द्वेषविजेता, वीतराग पुरुष। सट्ठिवासजाए समणे णिग्गंथे जातिधेरे। (स्था ३.१८७) जियकोहमाणमाया, जियलोहा तेण ते जिणा हति।... जातिस्मृति (आवनि १०७६) मतिज्ञान का एक प्रकार । पूर्व जन्म की स्मृति । इसके द्वारा । रागद्वेषमोहान् जयन्तीति जिनाः। (स्थावृ प १६८) पूर्ववर्ती नौ समनस्क जन्मों को जाना जा सकता है। जिनकल्प इदं जातिस्मरणं मतिज्ञानस्यैव एकः प्रकारोऽस्ति। अनेन (बृभा १३८४) (द्र जिनकल्पस्थिति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org जिन
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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