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________________ ११६ जैन पारिभाषिक शब्दकोश च्यवन छद्मस्थमरण ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का मरण। ये देव आयुष्य पूर्ण । मरण का एक प्रकार । छद्मस्थ का मरण। कर नीचे आते हैं। छद्मस्थमरणम्-अकेवलिमरणम्। 'चयणे'त्ति च्युतिः च्यवनं-वैमानिकज्योतिष्काणां मरणम्। (सम १७.९ वृ प ३३) (स्था १.२७ वृ प १९) छन्दना सामाचारी भिक्षा में प्राप्त अशन आदि द्रव्यों के उपयोग के लिए गरु आदि को आमंत्रित करना। छंदणा दव्वजाएणं"। (उ २६.६) १. अनाचार का एक प्रकार । वर्षा तथा आतप निवारण के (द्र निमन्त्रणा) लिए छत्र धारण करना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। छन्न आलोचना (देखें चित्र पृ ३४१) आलोचना का एक दोष । स्वयं ही सुन पाए, पर आचार्य न .."छत्तं च"""तं विजं परिजाणिया।। आतपादिनिवारणाय छत्रं"कर्मोपादानकारणत्वेन ज्ञपरिज्ञया सुन पाए, वैसे धीरे से आलोचना करना। 'छन्नं' ति प्रच्छन्नमालोचयति यथाऽऽत्मनैव श्रृणोति परिज्ञाय प्रत्याख्यानपरिज्ञया परिहरेदिति। (सूत्र १.९.१८ ७) नाचार्यः। २. महाप्रातिहार्य का एक प्रकार। चौंतीस अतिशयों में से (स्था १०.७० वृ प ४६०) एक। धर्मोपदेश के समय तीर्थंकर के सिर पर देवकत छर्दित चन्द्रमंडल सदृश तीन छत्र (आतपत्र) होते हैं। एषणादोष का एक प्रकार । दान देते समय जिसके छींटे नीचे कंकिल्लि कुसुमवट्ठी देवझुणि चामराऽऽसणाई च। गिर रहे हों, इस प्रकार दिया जाता हुआ आहार आदि लेना। भावलय भेरि छत्तं जयंति जिणपाडिहेराई। घृतादिच्छईयन् यद्ददाति तत् छर्दितम्। ."भूर्भुवःस्वस्त्रयैकसाम्राज्यसंसूचकं शरदिन्दुकुन्दकुमुदाव (योशा १.३८ वृ पृ १३७) दातं..."छत्रत्रयमतिपवित्रमासूत्र्यते। (प्रसा ४४० वृ प १०६) छविच्छेद आगासगयं छत्तं। १. प्राचीन दण्डनीति का एक प्रकार । सजा के रूप में हाथ, (सम ३४.१.७) पैर, नाक आदि काटना। छत्ररत्न 'छविच्छेदो'हस्तपादनासिकादिच्छेदः। चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक रत्न, जो चक्रवर्ती की (स्था ७.६६ वृ प ३७८) सेना को धूप, हवा, वर्षा आदि से बचाता है। २. स्थूलप्राणातिपातविरमण व्रत का एक अतिचार। पीटकर छत्रं "तपनातपवातवृष्टिप्रभृतिदोषक्षयकारकम्। या बांधकर प्राणियों के अंगोपांग का छेदन करना। (प्रसा १२१४ वृ प ३५०) थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा"छविच्छेए। छद्मस्थ (आव परि पृ २१) अकेवली। वह जीव, जिसका ज्ञान और दर्शन आवृत होता है, जो घात्यकर्म (घातिकर्म) की उदयावस्था में रहता है। छिन्न निमित्त छद्म ज्ञानदृगावरणे, तत्र तिष्ठन्तीति छद्मस्थाः।। अष्टांग महानिमित्त का एक प्रकार। वस्त्र, शस्त्र, छत्र आदि (धव पु १ पृ १८८) में शस्त्र, चूहे, कण्टक आदि से हुए छेद के द्वारा शुभाशुभ अकेवली छदास्थः। का ज्ञान करना। घात्यकर्मोदयः छद्म, तत्र तिष्ठतीति छद्मस्थः। (जैसिदी ७.२२ वृ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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