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________________ ११ पुनः महाभाय ४ । ३ । १०४ ॥ पर पतञ्जलि मुनि लिखता हैवैशंपायनान्तेवासी कठः । कठान्तेवासी खाडायनः । वैशंपायनान्तेवासी कलापी। यह शिष्य-परम्परा निम्नलिखित प्रकार से सुस्पष्ट होजायगी । वैशंपायन(चरक) खाडायन (१) आलम्बि (८) कठ (१९) कलापी (२) पलंग (३) कमल (४) ऋचाम रिद्र तुम्बरु उल्क छगलिन् (५) आरुणि (६) ताण्ड्यक (७) श्यामायन इन में से १-३ प्राच्य; ४-६ उर्दाच्य और ७-९ माध्यम हैं । देखो महाभाष्य ४ । २ । १३८ । और काशिकावृत्ति ४ । ३ | १०४॥+ पूर्वोक्त नामों में से (१) हारिद्रविणः । (२) तौम्बुरविणः। (३) आरुणिनः। ये तीन महाभाष्य ४।२।१०४॥ में ब्राह्मण-ग्रन्थ प्रवचनकर्ता कहे गये हैं। अतः यह निर्विवाद है कि साम्प्रतिक सब ब्राह्मण-ग्रन्थ महाभारत-काल में ही संगृहीत हुए। ___*पं. श्रीपाद कृष्ण बेल्वल्कर ने जो Four Unpublished Upanisadic Texts (सन् १९२५) में छागलेयोपनिषद् छापा है। वह इसी काष का प्रवचन प्रतीत होता है। इस उपनिषद् के आर्ष होने में कोई सन्देह नहीं । पाणिनि सूत्र "छगलिनो ढिनुक्" ४ । ३ । १०९ ।। में इसी ऋषि के प्रोक्त-ब्राह्मण का वर्णन है। + वायुपुराण पू० ६० । ७-९ ॥ में इस से स्वल्पभेद है। + यही हारिद्रविक हैं जिनकी संहिता वा ब्राह्मण का प्रमाण निरुक्त १० ॥५॥ में ऐसे दिया है-"यदरोर्दात् तद्रुद्रस्य रुद्रत्वम्” इति हारिद्रविकम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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