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________________ इन मन्त्रों में भी परिक्षित् आदि पदों का अर्थ संवत्सर तथा आग्ने ही है । देखो ऐ० ब्रा० ६ । ३२ ॥ और गो. उ. ६ । १२ ॥ यहां किसी राजा आदि का वर्णन नहीं है। विस्तरभय से मन्त्रार्थ नहीं किये गये। ब्राह्मण-ग्रन्थों के महाभारत-कालीन* होने में और भी प्रमाण देखो | (क) महाभारत आदिपर्व अध्याय ६४ में लिखा हैब्रह्मणो ब्राह्मणानां च तथानुग्रहकाङ्क्षया । विव्यास वेदान् यस्मात् स तस्माद्वयास इति स्मृतः ॥१३०॥ वेदानध्यापयामास महाभारतपञ्चमान् । सुमन्तुं जैमिनि पैलं शुकं चैव खमात्मजम् ॥ १३१ ॥ प्रभुर्वरिष्ठो वरदो वैशंपायनमेव च । संहितास्तैः पृथक्त्वेन भारतस्य प्रकाशिताः ॥ १३२ ॥ . अर्थात् वेदव्यास के सुमन्तु, जैमिनि, वैशंपायन, पैल चार शिष्य थे । इन्हीं चारों को उन्हों ने मुख्यत. से वेदादि पढ़ाये । वैशंपायन को ही चरक कहते हैं । काशिकावृत्ति ४ । ३ । १०४ ॥ में लिखा है वैशंपायनान्तेवासिनो नव । . . . . . . चरक इति वैशंपायनस्याख्या । तत् संबन्धन सर्वे तदन्तेवासिनश्वरका इत्युच्यन्ते । *महाशय L. A. Waddell अपने पुस्तक Indo-Sumerian Seals Deciphered (सन् १९२५) पृ० ३ पर महाभारत-युद्ध का काल बताते हुए सब पाश्चात्य लेखकों को मात कर गये हैं। वे लिखते हैं. . . . . . . . . . . . at the time of the Mahabharata War about 650 B. C., was the Bharat Khattiyo (क्षत्रिय) King Dhritarashtra, . . . यह लिखते समय वे उस भारतीय ऐतिह्य को भूल गये हैं, जिस पर अपने पुस्तक के अन्य स्थलों में वे बड़ी श्रद्धा दिखाते हैं। क्या उन्हें इतना भी स्मरण नहीं रहा कि धृतराष्ट्र तो गौतम बुद्ध के काल से सैकड़ों ही नहीं, सहस्रों वर्ष पूर्व हुआ था । समस्त भारतीय राज-वंशावलियां इस बात का अकाट्य प्रमाण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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