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________________ व्हाण-तओ पाइअसद्दमहण्णवो ४२३ (पि ३१३)। वकृ. पहायमाण (णाया १, ण्हाय वि [स्नात] जिसने स्नान किया हो जिसको स्नान कराया गया हो सह (महा १३)। संकृ. व्हाइत्ता, हाणित्ता (पि | वह, नहाया हुआ (कप्प; औप)। भवि)। ३१३)। व्हायमाण देखो हा पहाविअ ' [नापित हजाम, नाई (हें १, पहाण न [स्नान] नहाना, नहान (कप्प; प्रहारु न [स्नायु १ प्रस्थि-बन्धनी सिरा, २३०; कुमा); 'घेत्तूण एहावियं पागएण प्राप्र)। पीढ पुंन [पीठ] स्नान करने का नस, धमनी (सम १४६; पण्ह १, १ ठा, मुडावियो कुमरो' (उप ६ टी)। पसेवय पट्टा (णाया १,१)। २,१, प्राचा)। २ अयादश श्रेणी में की एक | पुं [प्रसेवक ] नाई की अपने उपकरण व्हाणमल्लिया स्त्री [स्नानमल्लिका] स्नान- श्रेणी, कुम्हार, पटेल आदि (लोकप्रकाश | रखने की थैली (उत्त २)। योग्य पुष्प-विशेष, मालती-पुष्प (राय ३४) । ४६४ पत्र, सर्ग ३१)। ण्हु प [दे] निश्चय-सूचक अव्यय (जीवस ण्हाणिआ स्त्री [स्नानिका] स्नान-क्रिया बहाव देखो ण्व। रहावइ, एहादेइ (भविः १८०)। (पराह २, ४-पत्र १३१)। पि ३१३)। वक. पहावअंत (पि ३१३)। ण्हुसा स्त्री [स्नुषा] पुत्र-वधू, पुत्र की भार्या, कहाणिय वि [स्नानित] जिसने स्नान किया | संकृ. पहाविऊण (महा)। पतोहू (प्रावम पि ३१३) । हो वह (पव ३८)। | हाविअ वि [स्नपित] नहलाया हुमा, | ण्हुहा देखो ण्डसा (सिरि २५१) । ॥ इन सिरिपाइअसद्दमहण्णवे णाप्राराइसहसंकलणो, अइएसेण नपाराइसद्द संकलणो बाईसइमो तरंगो समत्तो॥ त पुं[त] दन्त-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष ताएण अहं भरिणपो. | तइस (अप) वि [तादृश] वैसा, उस तरह (प्राप्र; प्रामा)। भगिणी ठाणम्मि दायव्वा' का (हे ४; ४०३, षड्)। त स [तत् ] वह (ठा ३, १; हे १,७ (सुर १, १२३)। तई स्त्री [त्रयो] तीन का समुदाय (सुपा ५८)। कप्प; कुमा)। तइअहा (अप) अ [तदा] उस समय (भवि; तईअ देखो तइअ = तृतीय (गा ४११, भग) । त स [त्वत्] तू । कय वि [कृत] तेरा तउ । न [त्रपु] धातु-विशेष, सीसा, सण)। किया हुआ (स ६८०)। तउअ रोंगा (सम १२५ मौप; उप ९८६ तइआ अ [तदा] उस समय (हे ३, ६५, गा त देखोतया = स्वच् । 'होसि वि[ दोषिन्] | टी; महा)। पट्टिआ स्त्री [पट्टिका कान १२)। का प्राभूषण-विशेष (द ५, २३)। १ चर्म-रोगो । २ कुष्ठी (पिंड ४७५)। | तइआ स्त्री [तृतीया] तिथि-विशेष, तीज (सम तउस न [त्रपुष] देखो तउसी (राज)। तअ देखो तव तपस् (हास्य १३५)। तइ। । २९)। _ 'मिजिया स्त्री [मिञ्जिका क्षुद्र कीट-विशेष, वि [तति] उतना (वव १)। | तइया स्त्री [तृतीया] तीसरी विभक्ति (चेइय | श्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (जीव १)। तइ (अप) म [तत्र] वहाँ, उसमें (षड्)। ६८३)। तउस न [त्रपुष] खीरा, ककड़ी (दे ८,३५)। तइम [तदा] उस समय (प्राप्र)। तइल देखो तेल्ल (उप ६२९) । तउसी स्त्री [त्रपुषी] कर्कटी-वृक्ष, खीरा का तइअ वि [तृतीय] तीसरा (हे १,१०१ तइलोई स्त्री [त्रिलोकी] तीन लोक-स्वर्ग, गाछ (गा ५२४) । कुमा)। मत्यं और पाताल (सुपा ६८)। तए म[ततस् ] उससे, उस कारण से । २ तइअ (अप) वि [त्वदीय] तुम्हारा (भवि)। तइलोक। न [त्रैलोक्य ] ऊपर देखो बाद में (उत्त १; विपा १,१)। तइअप [तदा] उस समय तइलोय । (पउम ३, १२५, ८, २०२० स तएयारिस वि [त्वादृश] तुम जैसा, तुम्हारी 'भणिमो रन्ना मंती, ५७१, सुर ३, २०; सुपा २८२, ३५ तरह का (स ५२)। मइसागर तइय पव्वयंतेरण।। ४४८)। | तओ देखो तए (ठा ३, १, प्रासू ७८)। Jain Education Intematonal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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