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________________ ४२२ पाइअसद्दमहण्णवो णवत्थ-व्हाण णेवत्थ न [नेपथ्य] १ वस्त्र प्रादि की रचना, | हर देखो णेहुर (पएह १. १)। णोजुग न [नोयुग] न्यून युग (सुज्ज ११)। वेष की सजावट, नाटक आदि में परदे के | णेहल पुंस्नेिहल] छन्द-विशेष (पिंग)। णोदिअ देखो णोल्लिअ (राज)। भीतर का स्थान जिसमें नट-नटी नाना प्रकार हल वि [स्नेहल1 स्नेही, स्नेह युक्त, णोमल्लिआ स्त्री [नवमल्लिका] सुगन्धि फूलका वेश सजाते हैं; रंगशाला, नाट्यशाला 'पियराई नेहलाई, अणुरत्तानो गिहिणीमो' | वाला वृक्ष-विशेष, नेवारी, वासंती (नाट (णाया १, १)। २ वेष (विसे २५८७; सुर (धर्मवि १२५)। पि १५४)। ३, ६२, सणः सुपा १५३)। णेहालु वि[स्नेहवत् ] स्नेह-युक्त, स्निग्ध | णोमालिआ स्त्री [नवमालिका] ऊपर देखो णेवत्थण न [दे] निरुंछन, उत्तरीय वन का (हे २, १५६)। (हे १, १७०, गा २८१; षड्, कुमा; अञ्चल (कुमा)। णेहुर पुं[नेहुर] १ देश-विशेष, एक अनार्य | अभि २६)। णेवस्थिय वि [नेपथ्यित] जिसने वेष-भूषा देश। २ उसमें वसनेवाली अनार्य जाति णोमि पुं[दे] रस्सी, रज्जु (दे ४, ३१) । की हो वह 'पुरिसनेवत्थिया' (विपा १, ३)। (पएह १, १-पत्र १४)। गोलइआ। स्त्रो [दे] चञ्चु, चोंच, चाँच (दे णेवाइय वि निपातिक] निपात-निष्पन्न | णो मनो] इन अर्थों का सूचक अव्यय-१ णोलच्छा ४, ३६)। नाम, अव्यय प्रादि (विसे २८४०; भग)। णोल्ल सक [क्षिप् , नुद्] १ फेंकना । प्रेरणा निषेध, प्रतिषेध, अभाव (ठा &कसः गउड)। करना। पोल्लइ (हे ४, १४३; षड्)। णेवाल पुं [नेपाल] १ एक भारतीय देश, २ मिश्रण, मिश्रताः 'नोसद्दो मिस्सभावम्मि' नेपाल (उप पू ३६३; कुप्र ४५८)। २ वि. | णाल्लेइ (गा ८७५)। कवकृ. णोल्लिज्जत (विसे ५०)। ३ देश, भाग, अंश, हिस्सा (सुर १३, १९९)। नेपाल-देशीय नेपाली (पउम ६६; ५५)। (विसे ८८८)। ४ अवधारण, निश्चय (राज)। णोल्लिअ विनोदित] प्रेरित (से ६, ३२, णेविज न नैवेद्य देवता के आगे धरा आगम पुं [ आगम] १ पागम का | णेवेज्ज हुआ अन्न आदि ( सं १२२, पाया १,६; पण्ह १, ३; स ३४०) । प्रभाव । २ पागम के साथ मिश्रण। ३ | श्रा १६)। | णोव्व पुं[दे] पायुक्त, सूबा या सूबेदार राजणेव्वाण देखो णव्वाण - निर्वाण (प्राचा आगम का एक अंश (आवमा विसे ४६ | प्रतिनिधि (दे ४,१७)। ५०, ५१)। ४ पदार्थ का अपरिज्ञान सुर ६, २० स ७४४)। णोहल लोहल] अव्यक्त शब्द-विशेष (षड् णेवुअ देखो णिव्वुअ (उप ७३० टी)। (दि)। "इंदिय न [इन्द्रिय] मन, | पि २६०; संक्षि ११)। णेव्वुइ देखो णिव्बुइ (उप ४६८ टी)। अन्तःकरण, चित्त (ठा ६; सम ११; उप णोहलिआ स्त्री [नवफलिका] १ ताजी णेसग्गिय देखो णिसग्गिय (सुपा ६)। ५९७ टी)। कसाय पुं[कपाय] कषाय फली, नवोत्पन्न फली (हे १, १७०)। २ णेसजि वि निपचिन्प्रासन-विशेष से के उद्दीपक हास्य वगैरह नव पदार्थ, वे ये नूतन फलवाली (कुमा)। ३ नूतन फल का उपविष्ठ (पव ६७ पंचा १८)। हैं-हास्य, रतिः परति, शोक, भय, जुगुप्सा, उद्गमः 'गोहलिप्रमप्पणो कि ए मग्गसे, णेसजिअ वि निषधिक] ऊपर देखो (ठा पुंवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद (कम्म १, १७; मग्गसे, कुरवप्रस्स' (गा ६)। ५, १: प्रौपः पएह २, १; कस)। ठा)। केवलनाण न [कवलज्ञान णोहा स्त्री स्नुषा] पुत्र की भार्या, पुत्रवधू, णेसत्थि पुंदे] वरिणग् मन्त्री, वणिक् प्रधान अवधि और मनःपर्यव ज्ञान (ठा २, १)। | पतोहू, बहू (पि १४८संक्षि १५)। *गार पुकारना शब्द (राज) । गुण णअ वि [ज्ञक] जानकार (गा २०३) । णेसत्थिया । स्त्री [नैसृष्टिकी, नैशस्त्रिकी] वि [ गुण अयथार्थ, अवास्तविक (अणु)। णास देखो णास = न्यास (स्वप्न १३४)। सत्थी १ निसर्जन, निक्षेपण। २ "जीव पुं[जीव] १ जीव और अजीव से प्णुअ देखो ण्णअ (गा ४०५) । निसर्जन से होनेवाला कम-बन्ध (ठा २, १; भिन्न पदार्थ, अवस्तु । २ अजीव, निर्जीव । | ण्हं अ. १-२ वाक्यालंकार और पादपूत्ति में नव १८)। ३ जीव का प्रदेश (विसे)। तह वि [तथ] णेसप्प पुं [नैसर्प] निधि विशेष, चक्रवर्ती प्रयुक्त किया जाता अव्यय (कप्प; कस)। | जो वैसा ही न हो (ठा ४, २)। राजा का एक देवाधिष्ठित निधान ( ठाणो ण्हव सक [स्नपय् ] नहलाना, स्नान कराना। प्रदे] इन अर्थों का सूचक अव्यय(उप ६८६ टी)। गहवेइ (कुप्र ११७)। कवकृ. ण्हविजंत १ खेद । २ आमन्त्रण । ३ विचित्रता । ४ णेसर [दे] रवि, सूर्य (४,४४)। (सुपा ३३)। संकृ. ण्हविऊण (पि २१३) । वितर्क । ५ प्रकोप (प्राकृ ८०)। णेसाय देखो णिसाय = निषाद (राज)। |ण्हवण न [स्नपन] स्नान कराना, नहलाना णों [न] पुरुष, नरः ‘णोवावाराभावम्मि णेसु पुन [दे] १ ओष्ठ, ओठ, होंठ । २ पाँव (कुमा)। अरणहा खम्मि चेव उवलद्धी' (धर्मस | 'तह निक्खिवंतमंता कूवम्मि निहित्तणेसुजुर्ग ण्हविअ वि [स्नपित जिसको स्नान कराया १२५३, १२५६)। (उप ३२० टी)। गया हो वह (सुर २, ५८; भवि) । । णेह पुंस्नेह] १ राग, अनुराग, प्रेम (पाप)। णोक्ख वि [दे] अनोखा, अपूर्व (पिंग)। |हा । अक [स्ना] स्नान करना, नहाना । २ तैल मादि चिकना रस-पदार्थ । ३चिकनाई, णोगोण्ण वि [नोगौण] अयथार्थ (नाम) | ण्हाण एहाइ (हे ४, १४)। रहाणेइ, चिकनाहट (हे २, ७७, ४, ४०६, प्राप्र)। । (अणु १४०)। । रहाणेति (पि ३१३)। भवि. एहाइस्सं निहित्तणेसुमा योनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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