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________________ हेमंत-होरण पाइअसहमण्णवो सुप्रसिद्ध जैन प्राचार्य तथा ग्रन्थकार (दे८, हेरणि [हैरण्यिक] सुवर्णकार (उप 156; 177; भगः प्रापः पि 466) / 77H सुपा 658) / 3 विक्रम की पनरहवीं पृ 210) / भूका. होत्था, होहोन (कप्पः प्राप्र)। भवि. शताब्दी का एक जैन मुनि (सिरि 1341) / हेरन्नवय देखो हेरण्णवय (ठा 2, ३-पत्र होहिइ, होहिति, होहामि, होहिमि, होस्, जाल न [जाल] सुवर्ण की माला (प्रौप)। 67 76) / होस्सामि, होक्खइ, होक्खं (ह 3, 166; 'तिलय पुं [तलक] विक्रम की चौदहवीं हेरिअ पु[हरिक] गुप्त चर, जासूस (सुपा 167 166; प्राप्र; पि 521), होसइ शताब्दी का एक जैनाचार्य (सिरि 1340) / 464, 586) / (अप) (हे 4, 388) / कम. होइजइ, पुर न [पुर] एक विद्याधर-नगर (इक)। हेरिव [देहेरम्ब] विनायक, गणेश (दे. होइज्जए, होईप्राइ (षड : पि 476) वकृ. °मय वि [मय सोने का बना हुया (सुपा 8, 72; षड्) / होत, होमाण (हे 3, 180; 4, 355; 88) / महिहर महिधर] मेरु पर्वत | हेरुयाल सक [दे] क्रुद्ध करना, गुस्सा उपजाना। 372; कुमाः पि 476) / संक. होऊण, (गउड)। मालिगं श्री माटिनो एक ख्यालंति (णाया १,८--पत्र 144) / होऊणं, होअऊण, हाइऊण, हविय, दिक्कुमारी देवा (एक) / 'व बन] हेला स्त्री [हेला] 1 स्त्री की शृङ्गार-संबन्धी होत्ता (गउड पि 585: 586 कुमा)। | हेकृ. होउं, होत्तर (महा; पि 475: कप्प)। [विमल एक जैन प्राचार्य (कुम्मा 35) / 1.55) / 3 अनायास, अत्प प्रयास, सहलाई, कृ. होयव्य (कप्प; महा, उव, प्रासू 16; भि [भ] चौथी नरक-पृथिवी का एक | सरलता (से 1, 55, कप्पू: प्रवि 11; पि नरक-स्थान (निर 1, 1) / हो म [हो] इन प्रों का सूचक अव्यय-१ हेमंत [हेमन्त 1 ऋतु-विशेष, मगसिर या हेला श्री [दे. हेला] वेग, शीघ्रता (दे 8, विस्मय, प्राश्चर्य (पाना नाट-मृच्छ 112) / अगहन तथा पोस या पुस महिना (पान प्राचा 71 कप्पू प्रवि 11; पि 375) / 2 संबोधन, आमन्त्रण (संक्षि 47 उप 567 कप्पः कुमा)। 2 शीतकाल (दस 3, 12) / ! हेलिय पुं [हैलिक] एक तरह की मछली टी)। (जीव 1 टी-पत्र 36) / हेमंत वि [हेमन्त हेमन्त ऋतु में उत्पन्न (सुज १२-पत्र 216) / हेलअ न [दे] क्षुत. छींक (दे 8, 72) / होंड देखो हुड (विचार 507) / हेलक्का स्त्री [दे] हिका, हिचकी (दे 8, हेमतिअ वि [हैमन्तिक] ऊपर देखो (कप्पा हो? ' [ओप्ट] होंठ, प्रोठ (प्राचा)। प्रौप; गा 66, राय 38) / हेल्लि (अप) महले] सखी का आमन्त्रण, होड्ड देखो हुड्ड; 'तो हं छोडेमि होडो' (सुपा हेमग वि [हैमक] हिम का, हिम-संबन्धी 277, 278) / (ठा 4. ४-पत्र 287) / हेवं (अशो) देखो हेवं (पि 336) / होढ [होड मोष, चोरी की वस्तु (णाया हेमवइ / पुंन[हैमवत] 1 वर्ष-विशेष, क्षेत १,२–पत्र 86: पिंड 380) / हेमवय विशेष (इकः सम 12; जं ४-पत्र हेवाग ' [हेवाक] स्वभाव, पादत (राज)। होण देखो हूगहूण (पब २७४विचार 266, 300, ठा 2, 3 टी-पत्र 67, हेसमण वि [दे] उन्नत, ऊँचा (षड)। पउम 102, 106) / 2 हिमवंत पर्वत का हेसा स्त्री [हेषा] अश्व-शब्द (सुपा 288 श्रा होत्तिय पुं[होत्रिक] 1 वानप्रस्थ तापसों का एक शिखर / 3 कूट-विशेष (इक)। 4 वि. 27) / एक वर्ग, अग्निहोत्रिक वानप्रस्थ (औपः हिमवंत पर्वत का (राय 74 पौष)। 5 पुं. हेसिअ न [हेपित] ऊपर देखो (दे 8, 680 भग 11, ६-पत्र 515) / 2 न. तृणहैमवत क्षेत्र का अधिष्ठाता देव (जं ४--पत्र पउम 54, 30; प्रौप; महा भवि)। विशेष (पएण १-पत्र 33) / हेसिअ न [दे. हेषित] रसित, चीत्कार हेम्म देखो हेन (संक्षि 17) / होम [होम हवन, अग्नि में मन्त्र-पूर्वक हेर सक ] 1 देखना, निरीक्षण करना। धृत आदि का प्रक्षेप (अभि 156) हेहंभूअवि [दे] गुण-दोष के ज्ञान से रहित 2 खोजना, अन्वयण करना। वकृ. हेरंत और निर्दम्भ, प्रज्ञ किन्तु निखालस (वव 1) / / होम सक [होमय ] होम करना / हेकृ. (पिंग) / संकृ हेरऊग (धर्मवि 54) / हेहय पुंहहय] 1 एक राजा (राज)। 2 होमिउं (ती 8) / हेरंब 1 महिष, भंसा / 2 डिरिडम, डिंब डिम्ब एक विद्याधर राजा / होमिअ वि गित हवन किया हुमा, वाद्य-विशेष (दे८,७६)। (पउम 10.20) / __'अणत्थपंडियकुकव्वविहोमियो' (स 714) / हेरणवत्र पुन हिरण्यवत]१ वर्ष-विशेष, हो देखो हव = भू / होइ. होनाइ, होपए, / हारभा स्त्री [हारम्भा वाद्य-विशेष, महाएक युगलिक क्षेत्र (इक पउम 102, 106) / होएइ, होति, होइरे, होपइरे (हे 4, 60 ढक्का, बड़ा ढोल (राय 46) / 2 रुक्मि पर्वत का एक शिखर / 3 शिखरी पड़ , कणउव; महा; पि 458, 476) / होरण न दे] वन्न, कपड़ा (दे८, 72: मा पर्वत का एक शिखर (इक 218) / होज, होजा, होएज, होएजा, होउ (हे 3, 771) / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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