________________ र (पान कही (उप / हिलिहीत] लान 648 पाइअसद्दमहण्णवो हिदि-हीयमाणय हिदि प[हृदि हृदय में 'हिदि निरुद्धवाउच' 'गब्भट्ठिप्रस्स जस्स उ हिला ! स्त्री [दे] वालुका, बालू, रेती (दे८, (विसे 220) / हिरगणवुटी सचणा पडिया। हिल्ला 66) तेणं हिरएणगब्भो हिल्लिय पुंस्त्री [दे] कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु हिद्ध वि [दे] स्रस्त, खिसका हुआ, खिसक जयम्मि उवगिजए उसभो।' की एक जाति (परण १-पत्र 45) कर गिरा हुआ (षड् ) / (पउम 3,68) / - हिल्लिरी स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जालहिम न हिम] 1 तुषार, प्राकाश से गिरता हिरि प्रकही] लजित होना / हिरिपामि विशेष (विपा १,८-पत्र 85) / जल-करण (पाम आचा: से 2, 11) / 2 (अभि 255) / हिल्लूरी स्त्री [दे] लहरी, तरङ्ग (दे 8, 67) / चन्दन, श्रीखण्ड (से 2, 11) / 3 शीत, हिरि' देखो हिरी (गाया 1, १६-पत्र 217) | हिल्लोडण न [6] खेत में पशुओं को रोकने ठंढ़ी, जाड़ा (बृह 1) / 4 बर्फ, जमा हुआ षड् ),म वि [मत् ] लजालु, शरमिन्दा | की प्रावाज (दे 8, 66) / जल (कप्पा जी 5) / 5. छठवीं नरक (उत्त 11, 13, 32, 103; पिंड 526) हिव देखो हव=भू / हिवइ (हे '4, 238). पृथिवी का पहला नरकेन्द्रक-नरक-स्थान बेर पु र] तृण-विशेष, सुगन्धवाला (देवेन्द्र 12) / 6 ऋतु-विशेष, मार्गशीर्ष तथा हिसोहिसा स्त्री [दे] स्पर्धा (दे 8, 69) (पामा उत्तनि ३)पौष का महीना (उप 728 टी) कर j हिरि पुं [हिरि] भालूक भालू का शब्द (पउम ही मही] इन अर्थों का सूचक अव्यय[कर] चन्द्रमा, चाँद (सुपा 51) गिरि 1 विस्मय, आश्चर्य (सिरि 473) / 2 दुःख ["गिरि] हिमाचल पर्वत (कुमाः भविः (उप 567 टो)। 3 विषाद, खेद / 4 शोक, हिरिअ वि[हीत] लज्जित (हे 2, 104) / सण) धाम पुं [धामन] वही (धम्म दिलगीरी (श्रा 16; कुप्र 436; कुमाः रंभा हिरिआ स्त्री [ह्रीका] लज्जा, शरम (उप 9 टो) नग पुं [नग] वही (उप पृ मन 37) / 5 वितर्क (सिरि 268) / 6 706, कुमा)। 348) / यर देखो कर (पान) °व, वंत कन्दर्प का अतिरेक / 7 प्रशान्त-भाव का पुं[वत् ] 1 वर्षधर पर्वत-विशेष: 'हिमवो हिरिंब न [दे] पल्वल, क्षुद्र तलाव (दे 8, अतिशय (अणु 136) / य महाहिमवो' (पउम 102, 105; उवा ही देखो हिरी (विसे 2603) म वि [ मत् ] हिरिमंथ दे] चना, अन्न-विशेष (दे८, कप्प; इक)। 2 हिमाचल पर्वत (पि 396) / लज्जाशील, लज्जालु (सूम 1, 2, 2, 18)* 3 राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र (अंत 3) / 70) / देखो हरिमंथ / ही अ [हीं ] मंत्राक्षर-विशेष, मायाबीज 4 एक प्राचीन जैन मुनि, जो स्कन्दिलाचार्य हिरिली स्त्री [दे] कन्द-विशेष (उत्त 36 | (सिरि 1210) के शिष्य थे; 'हिमवंतखमासमणे वंदे' (दि हीण वि [हीन] 1 न्यून, कम, अपूर्ण (उदाः 52) वाय पुं [पात] तुषार-पतन | हिरिवंग पू[दे] लगुड, लट्ठी (दे.८, 63) / णाया 1, १४–पत्र 190) / 2 रहित, (माचा) सीयल पुं[°शीतल] कृष्ण हिरी स्त्री [ह्री] 1 लज्जा, शरम (घाचा; हे | वजितः 'हयं नाणं कियाहीणं' (हे 2,104) / पुद्गल-विशेष (सुज २०)°सेल पुं[शैल 2, 104) / 2 महापद्म-ह्रद की अधिष्ठात्री 3 अधम, हलका। 4 निन्द्य, निन्दनीय हिमालय पर्वत (उप 216 टी) गम पुं देवी (ठा 2, ३-पत्र 72) / 3 उत्तर (प्रासू 125, उप 728 टो)। 5 पं. [गम] ऋतु-विशेष, हेमन्त ऋतु (गा रुचक-पर्वत पर रहनेवालो एक दिक्कुमारी प्रतिवादि-विशेष (हे 1, 103) जाइल्ल 330) *णी स्त्री [नी] हिम-समूह देवी (ठा ८-पत्र 437) / 4 सत्पुरुष वि [जातिक] अधम जाति का, नीच (कुप्र ३६७)ीयल पुं [चल] हिमालय नामक किंपुरुषेन्द्र की एक अन महिषी (ठा | जाति का (उप 728 टी)। बाड पं पर्वत (सुपा 632) लय पुं[लय] 4, १-पत्र 204) / 5 महाहिमवान पर्वत [वादिन] वादि-विशेष (सुपा २८२)वही अर्थ (पउम 10, 13; गउड)। का एक कूट (इक)। 6 देवप्रतिमा-विशेष हीण वि [हींण] भीत (विपा 1, 2 टीहिर देखो किर= किल (हे 2, 186; कुमा) (णाया 1, 1 टी-पत्र 43) पत्र 28) / हिरीअ देखो हिरिअ (हे 2, 104). हिरडी स्त्री [दे] चील पक्षी की मादा (दे 8, हीमाणहे / (शौ) अ. 1 विस्मय, पाश्चयं / हिरे देखो हरे (प्राप्र)। हीमादिके) 2 निर्वेद (हे 4, 282; कुमाः हिरण्ण) न [हिरण्य] 1 रजत, चाँदी हिला स्त्री [दे] भुजा, हाथः प्राकृ९८; मृच्छ 202, 206). हिरन्न / (उवाः कप्प)। 2 सुवर्ण, सोना 'बच्चामो पेच्छंता घणदलपावरण हीयमाण देखो हा / (माचाः कप्प) / 3 द्रव्य, धन (सूम 1, 3, साहुलिहिलामो।' हीयमाणगन [हीयमानक ] अवधिज्ञान 2,8) क्ख पु [क्ष एक दैत्य (से (पृथ्वी चं०-शांतिसूरि) हीयमाणय का एक भेद, क्रमशः कम होता 4, 22) + गब्भ पुं ["गर्भ] 1 ब्रह्मा / साहुलिहिलामो त्ति शाखाभुजाः / जाता अवधिज्ञान (ठा ६--पत्र 370, 2 प्रथम जिन भगवान् (पउम 106, 12) / (पृथ्वी० चं० प्रथमभव. संकेतकार रत्नप्रभकृत)। एंदि)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org