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________________ [२१] लोकशिक्षणनी अने परंपराना सातत्यने नभाववानी जवाबदारी आवी पडी हती. आ कारणे मौलिकतानुं आजना जेवू मूल्य के महत्त्व ए वखते ऊभुं थयु नहोतुं अने अनुसर्जन, अनुकरण के ऊछीन लेवामां कशो बाध मनातो न हतो. प्रेमानंद जेवा प्रथम पंक्तिना आख्यानकार आलुं ने आलुं कडवू पुरोगामीमांथी उठावी लेवामां कशुं अनुचित न माने. सर्जकता. परंपरानो लाभ लईने आगळ वधवामां जाणे धन्यता अनुभवती हती. मौलिकता करतां परिणामनी उत्तमता एने माटे जाणे वधारे महत्त्वनी हती. छेवटे, परंपसने झीलवानां सूझ-सामर्थ्य होय छे अने परंपराना सर्जनात्मक कलात्मक विनियोग जेवी पण कोई चीज होय छे, तेथी परंपरानिष्ठता पोते कोई अपमूल्य नथी, जेम केवळ मौलिकता पण, कदाच, आपोआप कोई मूल्य नथी. 'वसंतविलास', जयवंतसूस्कृित 'शृंगारमंजरी' अने गणपतिकृत ‘माधवानलकामकंदलाप्रबंध' पर संस्कृत-प्राकृत साहित्यपरंपरानो प्रबळ प्रभाव छे, परंतु आ परंपरा तो बीजाओ पासे . पण हती. आQ परिणाम अन्य कोई सिद्ध करी शकतुं नथी ए शुं बतावे छे ? आ कृतिओना रचयिताओ पासे परंपरानी जे अभिज्ञता अने रसज्ञता छे ते कंईक अनन्य छे अने पोतानी सर्जकताने एमणे परंपरानी भूमिमां रोपी छे एम कवाय. अखाभगतमां ज्ञानमार्गी कविताधासनो तो प्रेमानंदमां आख्यानकवितानी परंपरानो उत्कर्ष छे. अने दयाराम पासे तो कृष्णभक्तिनी परंपरानो केटलो लांबो वारसो छे ! पण ए वारसाने, रामनारायण पाठक कहे छे तेम, एमणे दीपाव्यो छे, उजाळ्यो छे. मध्यकालीन साहित्ये परंपराबद्ध रहीने पण भावविचारद्रव्य, कथाघटको, वर्णनरूढिओ, पद्यबंधो, प्रास, ध्रुवा, वाग्भंगिओनी जे समृद्धि निपजावी छे ए असाधारण छे अने अखाभगत, प्रेमानंद वगेरे थोडा कविओना जेवा प्रतिभावंत सर्जको तो आज सुधीना गुजराती साहित्यमा आपणने गणतर ज सांपडे छ. गुजराती भाषा जेमने माटे हमेशां गौरव अनुभवी शके एवा ए साहित्यस्वामीओ छे.. बेशक, मध्यकालीन साहित्य बहुधा हेतुलक्षी छे - पछी ए हेतु वैचारिक मतनी स्थापनानो होय, धर्मबोधनो होय, सांप्रदायिक महिमागाननो होय के लोकशिक्षणनो होय. मध्यकाळना रचयिताओ पोताने कवि तरीके ओछु ओळखावे छे, ए भक्तो छ, ज्ञानीओ छे, संतो छ, कथा कहेनारा "भटो' छे. कविकर्मनी सभानता एमनामां केटली हशे ए कहेवू मुश्केल छे. पण ए याद राखवू जोईए के कोई पण प्रकारनी हेतुलक्षिताथी साव अलिप्त, केवळ रसलक्षी कहेवाय एवी थोडीक, 'वसंतविलास' 'माधवानलकामकंदलाप्रबंध' जेवी कृतिओ आपणने मध्यकाळमां मळे ज छे. जैन साधुकविने हाथे पण 'विराटपर्व' के 'वसंत फागु' जेवी धर्मबोधना ने सांप्रदायिकतानाये स्पर्श विनानी कृतिओ मळे छे. एवी तो अनेक कृतिओ मळे छे, जेनी भोंय चोकस धर्मसंस्कारनी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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