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________________ [२२] परंपरानी होय पण समग्र निरूपण रसलक्षी ज होय. राधाकृष्णविषयक बारमासा वगेरे प्रकारनी घणी कृतिओ आमां आचे, तो जयवंतसूरिना “स्थूलिभद्रकोशाप्रेमविलास फाग' जेवी कृतिमां पण वस्तु जैन परंपरानुं छे, ए बाद करीए तो ए शुद्ध विरहकाव्य ज बनी रहे छे. एमां जैनत्वनी बीजी कशी छाया पडेली नथी. अने 'धर्मोपदेशनो के एवो हेतु गौण के आनुषंगिक बनी जतो होय अने कविकौशल- प्रवर्तन ने रसदृष्टि मुख्य बनी जतां होय एवी कृतिओनो तो मध्यकाळमां तोटो नथी. आख्यानकविता अने जैन रासाओ निर्मायेला तो छे कशाक धार्मिक-सांस्कृतिक बोध माटे, एवी सामग्री 'एमां ओछीवत्ती होय छे, छतां एनी साथसाथे एमां कथारस, जनस्वभावरस, वर्णनरस अने पद्यरस पण वहे छे. शामळ भट्टमां कवित्व कई ऊंची कोटिनुं नथी, ने एमनी वारताओनो एक महत्त्वनो हेतु लोकशिक्षण छे, तेम छतां कथाकौतुकरसथी ए वार्ताओ छलकाय छे अने आस्वाद्य बने छे. कविनी प्रतिज्ञा के एना प्रगट हेतुथी आपणे भ्रान्तिमां पडी एनाथी विमुख थई जवा जेवू नथी. छेवटे, साहित्यनी शुद्धता ए कई कलात्मकतानो पर्याय नथी अने हेतुनिष्ठता कई अनिवार्यपणे कलात्मकताने अवरोधक नथी. ज्ञानवैराग्यभक्तिना भावो ने उपदेशवृत्ति सुध्धां काव्योंचित विषय होई शके छे. काव्यभावनी व्याख्या संकुचित करवानी जरूर नथी. भारतीय काव्यशास्त्रे भावो(संचारिभावो)नी लांबी यादी करी छे अने आपणे एमां उमेरो करी शकीए. भक्तिनो भाव तो मध्यकाळमां वारंवार हृदयंगम अभिव्यक्ति पाम्यो छे अने ज्ञानविचारने पण अखाभगत जेवामां केवी अद्भुत मूर्तता सांपडी छे ! हेतुनिष्ठता होवा छतां अने कविपणानो दावो न करवा छतां मध्यकालीन साहित्यना रचयिताओए जे अनेकविध प्रकारनां कविकर्मो अने काव्यसिद्धि प्रगट कर्यां छे ते काव्यरसिकोने माटे मोटी वस समान छे ने अंके करी लेवा जेवां छे. माणिक्यसुंदरना 'पृथ्वीचंद्रचरित'नी गद्यलीला, जयवंतसूरिनां भावप्रवणता अने सुभाषितकौशल, गणपतिना 'माधवानलकामकंदला प्रबंध'मो वर्णनवैभव, विश्वनाथ जानीना 'प्रेमपचीशी'नी नाट्यगीतात्मक भावाभिव्यक्ति, यशोविजयजीनु बुद्धिचातुर्य अने अलंकारचातुर्य - आईं तो केटकेटलुं, मध्यकालीन साहित्यसृष्टिमां आपणे आपणी काव्यरसिकताने मोकळी मूकीए त्यारे, आपणी सामे आवे छे ! बेशक कोई पण समयनी चोक्कस साहित्यिक परिपाटीओ होय छे अने एनो आस्वाद एनी शरतोए ज लेवानो होय छे. मध्यकाळनां प्रासचातुर्य, ध्रुवानाचीन्य, पद्यगामछटावैविध्य वगेरे केटलांक कविकौशलो पण छे अने एमां आपणे रस लई शकीए तो मध्यकालीन साहित्यनो आपणो आस्वाद वधारे समृद्ध बने. आपणे जाणीए छीए के मध्यकालीन साहित्य कई एकांतमां अंगत वाचन माटेर्नु ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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