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________________ [२०] थयेला मध्यकालीन गुजराती शब्दकोशथी थशे, तो भाषाविकास, रूढिप्रयोगो, वाग्भंगिओ वगेरेनो एक नानकडो दस्तावेज हरिवल्लभ भायाणीना गुजराती भाषा ऐतिहासिक व्याकरण माथी सांपडशे पण अनेक प्रकाशित-अप्रकाशित कृतिओमां सावधानपणे विहरवू अने एना भाषावैभवने झीलवो ए जुदी वात छे. बालावबोधोनी गद्याभिव्यक्ति, जे वधारे जीवंत अने वास्तविक छ एनो तो आपणने अंदाज ज नथी. आपणे एम मानीने चालीए छीए के मध्यकाळमां गद्य कां तो 'पृथ्वीचंद्रचरित्र' जेवू पद्यकल्प गद्य छे, कां तो विवरण- शास्त्रीय गद्य छे. वास्तविक व्यवहारु गद्य तो जाणे पहेली वार ज 'वचनामृत मां सांपडे छे. पषा मध्यकाळमां शास्त्रीय बालावबोधोमां पण - खास करीने एमां आवती दृष्टांतकथाओमां तळपदा शब्दो ने रूढिप्रयोगो तथा बोलाती वाणीनी लढणो धरावतं जीवंत गद्य आपणने मळे ज छे. बारमाथी ओगणीसमा सैका सुधी- जे विपुल साहित्य आपणने मळे छे ते जैन संप्रदाये ऊभा करेला ज्ञानभंडारोने आभारी छे. स्वाभाविक रीते ज एमां जैन साहित्य वधारे सचवायु होय. प्राप्त मध्यकालीन साहित्यमां जैन संप्रदायनो हिस्सो घणो मोटो - लगभग ७५ टका जेटलो - छे एनुं कंईक कारण एमांथी आपणने जडी आवे छे. आ जैन साहित्यमाथी घणुं आपपी सांप्रदायिक गणीने आपणा अभ्यासनी बहार राख्यु छे. पण ते उपरांत पुष्टिसंप्रदायमा सघळा साहित्यने पण आपणे लक्षमां लीधुं नथी, भले, नरसिंह, मीरा, दयाराम जेवां कृष्णभक्तिना कविओमां आपणे घणो रस लीधो होय. स्वामिनारायण संप्रदायना साहित्यनो आपणो अभ्यास बहु थोडा साधुकविओ पूरतो मर्यादित छे तो रविसाहेब जेवा कबीरपरंपराना संतकविओ, मुस्लिम संतकविओ वगेरे अनेक धार्मिक सांप्रदायिक साहित्यप्रवाहोना कविओनो आपणे संपूर्ण अभ्यास कर्यो छे एवं कहेवाय एबुं नथी. खोजा कविओ ने अनेक रूखडिया संतकविओ अने भजनिको तरफ तो आपणे नजर पण करी नथी. प्रणामी संप्रदायना प्रवर्तक प्राणनाथ स्वामी अने एमना साहित्यिक प्रदाननी हजु हमणां ज आपणने खबर पडी छे. आवा अनेक नानामोटा धर्मसंप्रदायो अने परंपराओए मध्यकाळना गुजराती साहित्यनुं घडतर कर्य छे अने एमने ज्यारे योग्य न्याय मळशे त्यारे मध्यकालीन साहित्यनुं आपणुं दर्शन बदलाशे, परिपूर्ण बनशे अने अनेक नूतन प्राप्तिओ आपणने थशे. जयंत गाडीत घणा वखतथी मध्यकाळना धार्मिक-सांप्रदायिक साहित्यप्रवाहोनो अभ्यास करवानी अभिलाषा सेवी रह्या छे, ते एमनी अभिलाषा वहेलासर फळीभूत थाय एवं आपणे इच्छीए. - मध्यकालीन गुजराती साहित्य बहुधा परंपराग्रस्त छे अने एमां मौलिक सर्जकतानो अनुभव ओछो थाय छे ए फरियादना संदर्भमां बेत्रण बाबतो लक्षमा राखवी जोईए. एक तो ए के औपचारिक शिक्षणव्यवस्था नहींवत् हती एवा ए समयमां साहित्य पर ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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