SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जस्स खलु दप्पणिहि आणि इंदिआई तवं चरंतस्स । सो हीरइ असहीणेहिं सारही व तुरंगेहि ॥ जिस साधक की इन्द्रियाँ, कुमार्गगामिनी हो गई है, वह दुष्ट घोड़ों के वश में पड़े सारथि के समान उत्पथ में भटक जाता है । - दशवेकालिक - नियुक्ति ( २६८ ) सेणाई इंदियमयाई । मणणवइए मरणे, मरंति मन रूपी सेनापति के मरने पर इन्द्रिय रूपी सेनाएँ तो स्वयं ही मर जाती हैं । सुच्चिय सूरो सो चेव, पंडिओ तं इंदियो हिं सया, न लुंटिअं - आराधना - सार ( ६० ) पसंसिमो निच्चं । जस्स चरणधणं ॥ वही सच्चा शूरवीर है, वही सच्चा पण्डित है और उसी की हम नित्य प्रशंसा करते हैं, जिसका चारित्र रूपी धन नहीं है, सदा सुरक्षित है । इन्द्रियों रूपी चोरों ने लूँटा - इन्द्रियपराजयशतक ( १ ) गुणकारिआई धणिथं, धिइरज्जुनियंतिआई तुह जीव । निययाई 'दिया', वल्लिनिअत्ता तुरंगुव्व ॥ वश किया हुआ बलिष्ठ घोड़ा जिस प्रकार बहुत प्रकार धैर्यरूपी लगाम द्वारा वश की हुई स्वयं की लाभदायक होगी । अतः इन्द्रियों को वश में कर, उनका निग्रह करो । - इन्द्रियपराजयशतक ( ६४ ) Jain Education International 2010_03 नाणेण य झाणेण य, तवोबलेण य बला निरुभंति । इदियविसयकसाया, धरिया तुरंग व रज्जूहि ॥ ज्ञान, ध्यान और तपोबल से इन्द्रिय-विषयों और कषायों को बलपूर्वक रोकना चाहिये, जैसे कि लगाम के द्वारा घोड़ों को बलपूर्वक रोका जाता है । -- मरण - समाधि ( ६२१ ) लाभदायक है, उसी इन्द्रियाँ तुझे बहुत ही For Private & Personal Use Only [ ६६ www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy