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________________ अट्ट रुई धम्म सुक्कं झाणाइ तत्थ अंताई। निव्वाण साहणाई भवकारण मरुद्दाई। आत, रौद्र, धर्म और शुक्ल-इन चार ध्यानों में अन्तिम दो निर्वाण में सहायक है, और प्रथम दो आतं, रौद्र भव के कारण हैं। -~ध्यानशतक (५) नमस्कार-मन्त्र' जिणसासणस्स सारो, चउदस पुव्वाण जो समुद्धारो। जस्स मणे णमुक्कारो, संसारो तस्स किं कुणइ ॥ पंच परमेष्ठी नमस्कार जिन शासन का सार है, चौदह पूर्वो का समुद्धार है, वह नमस्कार जिसके मन में है, उसका संसार क्या कर सकता है । -कामघट-कथानक (१५३) एसो मंगलनिलओ, भवविलओ सव्व सान्तिजणओ य । नवकार परममंतो, बितिअमत्तो सुहं देइ ॥ महाप्रभाविक नमस्कार परम मंत्र है, मंगल का घर है, संसार से मुक्त करानेवाला है और सभी सुख-शान्ति करनेवाला है तथा स्मरण-मात्र से सुख देता है। -कामघट-कथानक (१५४) अप्पुवो कप्पतरु, एसो चिन्तामणी अपुब्बो अ। जो झायइ सयकालं, सो पावइ सिव सुहं विउलं। १-नमस्कार-मन्त्र इस प्रकार है णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्व साहूणं। एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पाचप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं । [ १५६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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