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________________ एवं कसायजुद्धमि हवदि खवयस्स आउधं झाणं । रणभूमीए कवचं होदि ज्झाणं कसाय जुद्धम्मि । कषायों के साथ युद्ध करते समय ध्यान क्षपक के लिए आयुध एवं कवच के समान है। -भगवती-आराधना ( १८६२/१८९३) वइरं रदणेसु जहा गोसीसं चंदणं व गंधेसु । वेरुलियं व मणीणं तह झाणं होइ खवयस्स ।। जैसे रत्नों में वज्र-रत्न श्रेष्ठ है, मणियों में वैडुर्यमणि उत्तम है, सुगन्धित पदार्थों में गोशीर्ष चन्दन श्रेष्ठ है वैसे ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में ध्यान ही क्षपक के लिए सारभूत तथा सर्वोत्कृष्ट है। -भगवती-आराधना (१८९६) वित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं । किसी एक विषय पर चित्त का स्थिर-एकाग्र करना ध्यान है । -आवश्यकनियुक्ति ( १४/५६) ज्झाणे जदि णियादा णाणादो णावभास दे जस्स । ज्झाणं होदि ण तं पुण जाण पमादो हु मोह मुच्छावा॥ जिस साधक के ध्यान में यदि ज्ञान से निज आत्मा का प्रतिभास नहीं होता है, तो वह ध्यान नहीं है। उसे प्रमाद, मोह अथवा मूर्छा ही जानना चाहिए। -तिलोयपण्णति (६/४०) जह व णिरुद्ध असुहं सुहेण, सुहमपि तहेव सुद्ध ण । तम्हा एण कमेण य, जोइ झाएउ णियआदं ॥ आरम्भ में जिस प्रकार व्यवहारभूत शुभ प्रवृत्तियों के द्वारा अशुभ संस्कारों का निरोध हो जाता है, उसी प्रकार चित्त-शुद्धि हो जाने पर शुद्धोपयोग रूप समता के द्वारा उन शुभ संस्कारों का भी निरोध हो जाता है । इस क्रम से योगी धीरे-धीरे आरोहण करता हुआ निजात्मा के ध्यान में सफल हो जाता है। -नयचक्र (३४८) १५८ ] ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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