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________________ यह नमस्कार मंत्र अपूर्व कल्पवृक्ष है और यह अलौकिक चिन्तामणि है, जो इसका सर्वदा ध्यान करता है वह परिपूर्ण सुखशान्ति पाता है । - कामघट - कथानक ( १५५ ) नवकारिक अक्खरो, पावं फेडेइ सत्त अयराणं । पण्णासं न्य पणं, पंचसयाई समग्गेणं ॥ नवकार का एक अक्षर सात सागरोपम पापों को नष्ट करता है और उसका एक पद पचास सागरोपम पापों को नष्ट करता है तथा सारा पद पांच सौ सागरोपम पापों को नष्ट करता है । जो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ विहिणा तित्थयर नामगोयं, सो बंधइ नत्थि जो विधिपूर्वक नमस्कार मंत्र को एक लाख तीर्थंकर गोत्र का बंध करता है, इसमें सन्देह नहीं है । - कामघट - कथानक ( १५६ ) य नमुक्कारं । संदेहो || यति अरिह - परम मन्तो पढ़िय्यते कीरते न जीववधो 1 यातिस तातिस जाती ततो जनो निव्वुति याति ॥ निद्रालु विद्याभ्यासी नहीं हो सकता । १६० ] अर्हतु परम मन्त्र अर्थात् नमस्कार - मन्त्र को यदि कोई पढ़ता है तथा जीवों की हिंसा नहीं करता है तो वह मनुष्य किसी जाति का होने पर भी निवृत्ति को प्राप्त करता है । - कुमारपाल - चरित्र (८/६ ) Jain Education International 2010_03 —कामघट-कथानक ( १५७ ) बार जपता है वह न विज्जा सह निद्दया । For Private & Personal Use Only निद्रा - वृहत्कल्प - भाष्य ( ३३८५ ) www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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