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________________ जिनकी सात लव की आयु है, वे देवता भी च्यवनकाल में सोचा करते हैं कि धर्म के सिवाय अन्य सब वस्तुएँ नश्वर हैं । - सार्थपोसह सज्झायसूत्र ( २८ ) पाणे य नाइवाएज्जा, अदिन्नं पि य नायए । साइयं न मुखं ब्रूया, एस धम्मे वसीम ओ | छोटे बड़े किसी भी जीव की हिंसा न करना, अदत्त यानी बिना दी हुई वस्तु न लेना, विश्वासघात न करना, विश्वासघाती असत्य न बोलना - यही धर्म है। अणुसासणं पुढो पाणी । एक ही धर्म को हरेक प्राणी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार अलग-अलग रूप में ग्रहण करता है । - सूत्रकृताङ्ग (१/८/१६ ) - सूत्रकृतांग ( १/१५/११ ) जं देइ दिक्ख सिक्खा, कम्मखयकारणे सुद्धा । धर्म वह है, जो कर्म को क्षय करनेवाली शुद्ध दीक्षा और शुद्ध शिक्षा देता है । - बोध - पाहुड़ (१६) जिसमें दया की पवित्रता है, वहीं धर्म है । धम्म दया विसुद्ध । Jain Education International 2010_03 -बोध पाहुड़ (२५) रणतयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो । रत्नत्रय ( सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र ) तथा जीवों की रक्षा करना धर्म है । - कार्तिकेयानुप्रेक्षा (४७८ ) धम्मारामे चरे भिक्खू, धिइमं धम्मसारही । धम्मारामरए दन्ते, बंभचेर - समाहिए । जो धैर्यवान है, जो धर्मरथ का चालक सारथि है, जो धर्म के आराम में १४८ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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