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________________ चार प्रकार के सहवास हैं — देव का देवी के साथ, शिष्ट भद्र पुरुष सुशीला भद्र नारी । देव का राक्षसी के साथ - दुष्ट पुरुष सुशीला नारी, राक्षस का राक्षसी के साथ - दुष्ट पुरुष कर्कशा नारी । - स्थानांग ( ४/४ ) उहि ठाणेहिं जीवा तिरिक्ख जोणियत्ताए कम्मं पगरें तिमाइल्लयाए, नियडिल्लयाए, अलियवयेणणं कुडतुला कूडमाणेणं । कपट, धूर्तता, असत्य वचन और कूट तुलामान – ये चार तरह के व्यवहार कर्म हैं, इनसे आत्मा पशुयोनि में जाता है । पशु ठाणेहिं जीवा माणुसत्ताए कम्मं पगरेंति पगइ भइयाए, पगइ विणीययाए, साक्कोसयाए, अमच्छरियाए । सहज सरलता, सहज विनम्रता, दयालुता और अमृत्सरता - ये चार तरह के व्यवहार मानवीय कर्म हैं, इनसे आत्मा मानव - जन्म पाता है । - स्थानांग ( ४/४ ) ११२ ] - स्थानांग ( ४/४ ) मधुकुंभे नाम एगे मधुपिहाणे | मधुकुंभे नामं एगे विसपिहाणे । विसकुंभे नामं एगे मधु पिहाणे । बिसकुंभे नामं एगे विसपिहाणे । मधु का चार प्रकार के घड़े होते हैं— मधु का घड़ा, मधु का ढक्कन । घड़ा विष का ढक्कन । विष का घड़ा मधु का ढक्कन । विष का घड़ा विष का ढक्कन । - स्थानांग (४/४ ) वत्तारि अवायणिजा अविणी, विगइपडिबद्ध, अविओसित पाहुड़े, माई । चार पुरुष शास्त्राध्ययन के योग्य नहीं हैं -- अविनीत, चटौरा, झगड़ालू और धूर्त । - स्थानांग ( ४/४ ) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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