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________________ हिययमपावमकलुसं, जीहाऽविय कडुय भासिणी णिच्चं । जंमि पुरिसंमि विज्जति, से मधुकुंभे विसपिहाणे ॥ जिसका हृदय तो निष्पाप और निर्मल है; किन्तु वाणी से कटु और कठोर भाषी है, वह पुरुष मधु के घड़े पर विष के ढक्कन के समान है । - स्थानांग ( ४/४ ) जं हिययं कलुषमयं जीहऽविय मधुर भाषिणी णिच्वं । " कुंभे महुपिहाणे ॥ जंमि पुरिसंमि विज्जति से विस जिसका हृदय कलुषित और दम्भयुक्त है; किन्तु वाणी से मीठा बोलता है, वह पुरुष विष के घड़े पर मधु के ढक्कन के समान है । स्थानांग ( ४/४ ) जं हिययं कलुषमयं, जीहाऽविय कडुयभासिणी णिच्चं । जंमि पुरिसंमि विज्जति से विसंकुंभे विसपिहाणे ॥ जिसका हृदय भी कलुषित है और वाणी से भी सदैव कटु बोलता है, वह पुरुष विष के घड़े पर विष के ढक्कन के समान है । - स्थानांग ( ४/४ ) समुहं तरामीतेगे समुहं तरह, समुहं तरामीतेगे गोप्पयं तरइ | गोप्पयं तारामीतेगे समुहं तरह, गोप्पयं तरामीतेगे गोप्पयं तरइ | कुछ मनुष्य सागर तैरने जैसा महान् संकल्प करते हैं और सागर तैग्ने जैसा महान कार्य भी करते हैं । कुछ मनुष्य सागर तैरने जैसा महान् संकल्प करते हैं, किन्तु गोपद तैरने जैसा छोटा कार्य ही कर पाते हैं । कुछ गोपद तैरने जैसा छोटा संकल्प करके सागर तैरने जैसा महान कार्य कर जाते कुछ गोपद तैरने जैसा छोटा संकल्प करके गोपद तैरने जैसा ही छोटा कार्य कर पाते हैं । संवासंगच्छति । देवे णाममेगे देवीए सद्धि देवे णाममेगे रक्खसीए सद्धिं संवासं गच्छति । रक्खसे णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति । रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति । Jain Education International 2010_03 - स्थानांग ( ४/४ ) For Private & Personal Use Only [ १११ www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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