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________________ जिनेश्वर सूरिके जीवन चरितका साहित्य । यो जैनाभिमतप्रमाणमनघं व्युत्पादयामासिवान् प्रस्थानैर्विविधैर्निरस्य निखिलं बौद्धादिसम्बन्धि तत् । नानावृत्तिकथाकथापथमतिक्रान्तं च चके तपः निस्संबन्धविहारमप्रतिहतं शास्त्रानुसारात्तथा ॥ तस्याचार्यजिनेश्वरस्य मदवद्वादिप्रतिस्पर्द्धिनः तबन्धोरपि बुद्धिसागर इति ख्यातस्य सूरेभुवि । छन्दोबन्धनिबद्धबन्धुरवचःशब्दादिसल्लक्ष्मणः श्रीसंविग्नविहारिणः श्रुतनिधेश्चारित्रचूडामणेः ॥ - ज्ञातासूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र और विपाकसूत्रकी वृत्ति । चन्द्रकुलविपुलभूतलमुनिपुङ्गववर्द्धमानकल्पतरोः। कुसुमोपमस्य सूरेर्गुणसौरभभरितभुवनस्य ॥ निःसंबन्धविहारस्य श्रीजिनेश्वराबस्य (?) शिष्येणाभयदेवाख्यसूरिणेयं कृता वृत्तिः॥ -औपपातिकसूत्रकी वृत्ति । चन्द्रकुलीनप्रवचनप्रणीताप्रतिबद्ध विहारहारिचरितश्रीवर्द्धमानाभिधानमुनिपतिपादोपसेविनः प्रमाणादिव्युत्पादनप्रवणप्रकरणविधप्रणायिनःप्रबुद्धप्रतिबन्धकप्रवक्तृप्रवीणाप्रतिहतवचनार्थप्रधानवाक्प्रसरस्य सुविहितमुनिजनमुख्यस्य श्रीजिनेश्वराचार्यस्य तदनु तदनुजस्य च व्याकरणादि. शास्त्रकर्तुः श्रीबुद्धिसागराचार्यस्य चरणकमलचश्वरीककल्पेन श्रीमभयदेवसूरिनाम्ना मया महावीरजिनराजसन्तानवर्तिना महाराजवंशजन्मनेय । ( इत्यादि) - स्थानाङ्गस्त्रकी वृत्तिका प्रारंभ । __ भिन्न भिन्न वृत्तियोंके दिये गये इन उद्धरणोंसे ज्ञात होगा, कि इनमें अभयदेव सूरिने, सूत्ररूपसे जिनेश्वर सूरिके उन सभी प्रधान गुणोंका उल्लेख कर दिया है जिनका सूचन, इसके पहले दिये गये बुद्धिसागराचार्य, जिनभद्र और जिनचन्द्र सूरिके कथनोंमें गर्भित है । अभयदेव कहते हैं कि-जिनेश्वर सूरि, वर्द्धमान सूरि-खरूप कल्पवृक्षके पुष्पके समान हैं जिन्होंने अपने सदाचार और विहारके सौगन्ध्यसे सब दिशाओंको सुवासित कर दिया है । मदवाले प्रतिस्पर्धि वादियोंका - दर्पवाले वाग्ग्मियोंका जिन्होंने पराजय किया है । जैनदर्शनाभिमत प्रमाणशास्त्रका व्युत्पादन कर जिन्होंने विविध प्रस्थानों द्वारा बौद्ध आदि वादोंका निरसन किया है । नाना प्रकारके व्याख्याग्रन्थ तथा कथाग्रन्थोंकी रचना कर जिन्होंने उपदेशमार्गका परिक्रमण किया है । शास्त्रानुसार तपःसंयमका पालन करते हुए निस्संबन्ध एवं अप्रतिबद्ध हो कर जिन्होंने सतत विहरण किया है । इनके लघुबन्धु आचार्य बुद्धिसागर भी ऐसे ही संविग्नविहारी, श्रुतनिधि और चारित्रचूडामणि हैं । इन्होंने छन्दोबद्ध शब्दशास्त्र (व्याकरणशास्त्र) आदि ग्रन्थोंकी रचना कर अपनी विद्वत्ताकी ख्याति प्राप्त की है - इत्यादि । ___अभयदेव सूरि बहुत ही परिमित और संतुलित कथन करने वाले तथा अत्यंत समभावी एवं निर्मम खभावके बडे भव्य आचार्य थे । इन्होंने अपने गुरुका इस प्रकार अत्यंत ही खल्प शब्दोंमें जो गुणसूचन किया है वह बहुत महत्व रखता है । वर्द्धमानाचार्यकृत उल्लेख । अभयदेव सूरिके एक विद्वान् शिष्य वर्द्धमानाचार्य हुए, जिन्होंने प्राकृतमें 'मनोरमा' नामक कथाग्रंथ, तथा दूसरा 'आदिनाथ चरित्र' नामक बहुत बडा ग्रन्थ बनाया । क्यों कि ये अभयदेव सूरिके साक्षात् शिष्य थे इसलिये संभव है कि इनको अपने प्रगुरु जिनेश्वर सूरिकी प्रत्यक्ष सेवा उपासना करनेका भी सौभाग्य प्राप्त हुआ हो । इन्होंने 'मनोरमा' कथाकी रचना संवत् ११४० में, और 'आदिनाथचरित्र'की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016066
Book TitleKathakosha Prakarana
Original Sutra AuthorJineshwarsuri
Author
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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