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________________ प्रथमकाण्डम् पतालवर्ग: शरीरमस्य भोगःस्याद् दंष्ट्रा त्वाशी: फणास्फटा। विर्षे तु गरलक्ष्वेडो विषभेदा इमेऽस्त्रियाम् ॥९॥ हलाहलः कालकूटः काकोलश्च प्रदीपनः । शौक्लिकेयोब्रह्मपुत्रो वत्सनाभश्च दारदः ॥१०॥ कञ्चुकः स्यात्तु निर्मोक आहियं स्यात् त्रिलिङ्गकम् । व्यालग्राही जाङ्गुलिको विषेवैद्याऽऽहि तुण्ड कौ ॥११॥ नरको निरयः किश्च नारको दुर्गतिः स्त्रियाम् । तत्प्रभेदास्तु तैपनो महारौरवरौरवो ॥१२॥ अजगर के तीन नाम-अजगरे १, वाहस २, शयु ३ पु० । (७) निर्विष सर्पजाति वालों में एक जाति का नाम-'घोण पु० । (८) दू रे जाति के दो नाम- धर्मण १ धावन २ पु० । (१) निर्विष द्विमुख सर्पो के दो नाम-राजील १ डुण्डुभ २ पु० । (१०) चित्र सर्प के दो नाम-मालुधान १, मातुलपन्नग २ पु० । हिन्दी-(१) सर्प के शरीर का एक नाम-'भोग' पु० । (२) सों के ताल में दात होता है उनके दो नाम-दंष्ट्रा १, आशी २ (अशिष्) स्त्री., इन दांतों से काटने पर कोई नहीं जीता है । (३) सर्पफणा के दो नाम-फणा १ स्फटा २ स्त्री० । (४) विष के तीन नाम-विष १, गरल २ नपुं, श्वेड ३ पु० विष के ८ भेद उनके ८ नाम-हलाहल (हालाहल) कालकूट २, काकोल ३, प्रदीपन ४, ब्रह्मपुत्र ५, शौक्लिकेय ६, दारद ७, वत्सनाभ ८ पु. (६)सर्प से निकले हुए त्वचा के दो नाम-कञ्चुक १ निर्मीक २ पु०। (७) सर्प के मङ्गप्रत्यङ्ग विकारों को 'माहिय' कहते है बिलिन । (८) सर्प के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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