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________________ प्रथमकाण्डम् पातालवर्ग: कालसूत्रं च सङ्घातोऽवीचि जीवास्तु नारेकाः । सिन्धुवैतरणी प्रेता यातना घोरवेदना ॥१३॥ कॅष्टं प्रसूति दुःख माभीलं कृच्छ्रमित्यपि । पीडाबाधा व्यथैतेषां त्रिपु ज्ञेयं विशेष्यगम् ॥१४॥ धर्मावंशा तृतीया तु शैला तुर्याऽञ्जना क्रमात् । रिष्टा षष्टी मघा माघ-वती नरकभूमयः ॥१५॥ ॥ इति पातालवर्गः समाप्तः ॥ पकड़ने वालों के दो नाम-व्यालग्राहिन् १ जागुलिक २ पु० । (९) विषवैद्य के दो नाम-विषवैद्य १, आहितुण्डिक २ पु० । (१०) नरक के चार नाम-नरक १, निरय २, नारक ३ पु० दुर्गति ४ स्त्र।। (११) नारक के भेद से नरक के ऊँचे छ नामतपन १, महारोरव २, रौरव ३, संघात ४, अवाचि ५ पु०, कालसूत्र ६ नपुं० । हिन्दी-(१) नरकवासी जीवों को 'नारक' कहते हैं । (२) नरक नदी के दो नाम--सिन्धु १, वैतरणी २, स्त्री० । (३) भयानक दुःख के तीन नाम- प्रेता १, यातना २, घोरयातना ३, स्त्री० । (४) दुःख के आठ नाम-कष्ट, प्रसूतिज २ ,दुःख ३ आभील ४, कृच्छ ५, नपुं०, पीडा ६, बाधा ७, व्यथा ८ स्त्री० ।। (५) नरक के ये सात नाम जैन शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं उनके नामशैला १, रिष्टा २, अञ्जना ३, वंशा ४, धर्मा ५, माघवती ६ मधा ७ स्त्रो० । .. || पातालवर्ग समाप्त ॥०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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