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________________ तृतीय काण्डम् ३७२ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ षष्ठ्यन्तेभ्य परे चेत्स्यु शालाच्छाया निशा सुराः ॥ ५०॥ सेना शब्दाश्च विज्ञेयाः गोशालमित्युदाहृतम् । " आवन्तोत्तर शब्दश्चान्नंन्तोत्तरपदो द्विगुः ॥५१॥ अनो नस्य च लोपोऽन्ते पञ्च खट्व मुदाहृतम् । त्रिलिङ्गेषु पुटी वाटी पेटी पात्री च दाडिमी ॥ ५२ ॥ कुवलीत्यादि शब्दा वै विद्वद्भिः समुदाहृताः । इतरेतरयोगे च द्वन्द्वे तत्पुरुषे तथा ॥ ५३॥ लिङ्गं परपदस्यैव प्रायशः समुदाहृतम् । (१) षष्ठयन्त से परे शाला, छाया - निशा - सुरा तथा सेना शब्दान्त शब्द नपुंसक तथा स्त्रीलिङ्ग होते हैं जैसे- गोशालम्, गोशाला, इक्षुच्छायम्, इक्षुच्छाया, श्वनिशम्, श्वनिशा, यवसुरम्, यवसुरा, नृसेनम्, नृसेना इत्यादि । ( २ ) आबन्त उत्तरपद वाला एवं संख्यावाचक पूर्व पद वाला द्विगु समास, एवं अन् अन्त उत्तरपद वाला द्विगु समास स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसक होता है किन्तु अन्त में अन् शब्द के नकार का लोप हो जाता है जैसे पश्च स्वट्वम् पश्चखवीं पञ्चतक्षं पश्चक्षी इत्यादि । ( ३ ) त्रिलिंग (पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुंसक) में पुटी (संपुट) शब्द, वाटी (वास्तु- गृहोद्यान) शब्द, पेटी (मञ्जूषा) शब्द, पात्री (वर्तन) शब्द, (दाडिमी) शब्द, एवं कुवली ( बदरीफल कमल मुक्ताफल) शब्द प्रयुक्त होते हैं । उदाहरण पुट: पुटी, पुटम्, वाटः वाटी, वाटम् पेट, पेटी, पेटम् पात्रः, पात्री, पात्रम्, दाडिम: दाडिमी, दाडिमम्, कुबलः, कुवली, कुवलम् इत्यादि । ( ३ ) इतरेतरयोग द्वन्द्व तथा तत्पुरुषसमास में उत्तरपद के अनुसार ही लिङ्ग प्रायः होता है जैसे - कुक्कुटमयूर्यै, मयूरीकुक्कुटौ कुलब्राह्मणः ब्राह्मणकुलम्, पिप्पली इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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