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________________ तृतीयकाण्डम् ३७१ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ द्विचतुष्पद' पदव्याला जातिभेदाः प्रकीर्तिताः । स्त्रिया योगे पुमाख्यास्तेऽपवादैश्चेन्न बाधिताः ॥४७॥ मल्लकश्चापि विज्ञेयः स्त्रीपुंसोभयलिङ्गकः । झाटलिर्वर्णकः स्वाति मुनिर्मनुर्वराटकः ४८ यष्टिः सृपाटी कर्कन्धूः शाटिर्मृषा कुटीकटी । स्त्री नपुंसकयोश्चाथाधिकारेऽत्रोचितादयः ॥४९॥ व्यञ् वुञ् प्रत्ययरूपान्ताः भावे कर्मणि च कचित् । (१) द्विपद वाचक चतुष्पदवाचक, षट्पदवाचक शब्द तथा सर्पवाचकशब्द जाति विशेष का बोध कराने वाला पुंलिङ्ग तथा स्त्रीलिङ्ग होता है जैसे मानुषः मानुषो, विप्रः, विप्रा, शूद्रः, शूद्रा, बकः, बकी, हंसः, हंसी भ्रमरः, भ्रमरी, उरगः, उरगी, व्यालः, व्याली, इत्यादि । ये सब पुल्लिङ्ग के योग होने पर स्त्रीलिङ्ग हो जाते हैं । किन्तु अपवाद से बाधित होने पर ईकारान्त न होकर आकारान्त होते हैं । (२) मल्लक शब्द (मालो) पुल्लिङ्ग स्त्रीलिङ्ग है मल्लकः, मल्लिका एवं झाटलि (वृक्ष विशेष) शब्द, वर्णक ( चन्दन विलेपन) शब्द स्वाति ( नक्षत्र विशेष ) शब्द, मुनिशब्द, मनुशब्द, वराटक (कौड़ी) शब्द, यष्टि शब्द, सृपाटी शब्द ( परिमाण विशेष ) कर्कन्धू (बदरीफल ) शब्द शाटो शब्द ( सारी) मृषा (स्वर्णादि विलेपन भाण्ड) कुटी शब्द एवं कटी शब्द पुल्लिङ्ग तथा स्त्री० है । (३) यहां स्त्रीनपुंसक का अधिकार चलता है जिसमें ष्यञ् प्रत्ययान्त तथा वुञ् प्रत्ययान्त उचित वगैरह शब्द भाव तथा कर्म अर्थ में नपुंसक एवं स्त्रीलिङ्ग होते हैं जैसे- औचित्यम् औचिती सामग्रयम्, सामग्री आहोपुरुषिका शैष्योपाध्यायिका इत्यादि, मानोज्ञकम रामणी कम् इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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