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________________ ४३० आराधना कथाकोश मधुर है कि उसे देखते ही रहनेकी इच्छा होती है । प्रयत्न करने पर भी आँखें उस ओरसे हटना पसन्द नहीं करती। अस्तु । पद्मावतीकी इस अनिंद्य सुन्दरताका समाचार किसोने चम्पाके राजा दन्तिवाहनको कह दिया । दन्तिवाहन इसकी सन्दरता की तारीफ सुनकर कुसुमपुर आये। पद्मावतीको-एक मालीकी लड़कीको इतनी सुन्दरी, इतनी तेजस्विनी देखकर उसके विषय में उन्हें कुछ सन्देह हुआ । उन्होंने तब उस मालीको बुलाकर पूछा-सच कह यह लड़की तेरी ही है क्या ? और यदि तेरी नहीं तो इसे कहाँसे और कैसे लाया ? माली डर गया। उससे राजाके सवालोंका कुछ उत्तर देते न बना। सिर्फ उसने इतना ही किया कि जिस सन्दूक में पद्मावती निकली थी, उसे राजाके सामने ला रख दिया और कह दिया कि महाराज, मुझे अधिक तो कुछ मालूम नहीं, पर यह लड़की इस सन्दूकसे निकली थी। मेरे कोई लड़काबाला न होनेसे इसे मैंने अपने यहाँ रख लिया। राजाने सन्दुक खोलकर देखा तो उसमें एक अगूठी निकली। उस पर कुछ इबारत खुदी हुई थी। उसे पढ़कर राजाको पद्मावतीके सम्बन्धमें कोई सन्देह करनेकी जगह न रह गई। जैसे वे राजपुत्र हैं वैसे ही पद्मावती भी एक राजघरानेकी राजकन्या है। दन्तिवाहन तब उसके साथ ब्याह कर उसे चम्पामें ले आये और सूखसे अपना समय बिताने लगे। दन्तिवाहनके पिता वसुपालने कुछ वर्षोंतक और राज्य किया। एक दिन उन्हें अपने सिर पर यमदूत सफेद केश देख पड़ा। उसे देखकर इन्हें संसार, शरीर, विषय-भोगादिसे बड़ा वैराग्य हुआ। वे अपने राज्यका सब भार दन्तिवाहनको सौंप कर जिनमन्दिर गये। वहाँ उन्होंने भगवान्का अभिषेक किया, पूजन की, दान किया, गरीबों को सहायता दो। उस समय उन्हें जो उचित कार्य जान पड़ा उसे उन्होंने खुले हाथों किया । बाद वे वहीं एक मुनिराज द्वारा दीक्षा ले योगी हो गये। उन्होंने योगदशामें खूब तपस्या की । अन्तमें समाधिसे शरीर छोड़कर वे स्वर्ग गये। ___ दन्तिवाहन अब राजा हुए। प्रजाका शासन ये भी अपने पिताकी भाँति प्रेमके साथ करते थे। धर्म पर इनकी भी पूरी श्रद्धा थी। पद्मावती सी त्रिलोक-सुन्दरीको पा ये अपनेको कृतार्थ मानते थे। दोनों दम्पत्ति सदा बड़े हँस-मुख और प्रसन्न रहते थे। सुखकी इन्हें चाह न थी, पर सुख ही इनका गुलाम बन रहा था। एक दिन सती पद्मावतीने स्वप्नमें सिंह हाथी और सूरज को देखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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