SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शनके प्रभावको कथा ३७९ में एक ओरसे सैकड़ों कुत्तोंका झुण्डका झुण्ड उन पर आ टूटा । तब वे सब डरके मारे उठ उठकर भागने लगे। श्रेणिक उन कुत्तोंसे न डरा, वह जल्दीसे उठकर खीरको पत्तलोंको एक ऊँचे स्थान पर धरने लगा । थोड़ी ही देरमें उसने बहुत-सी पत्तलें इकट्ठी कर लों। इसके बाद वह स्वयं उस ऊँचे स्थान पर रखे हुये सिंहासन पर बैठकर नगारा बजाने लगा, जिससे कुत्ते उसके पास न आ पावें और इकट्री की हुई पत्तलोंमेंसे एक-एक पत्तल उठा-उठा कर दूर-दूर फेंकता गया। इस प्रकार अपनी बुद्धिसे व्यवस्था कर उसने बड़ी निर्भयताके साथ भोजन किया। इसी प्रकार आग लगने पर श्रेणिकने सिंहासन, छत्र, चवर आदि राज्य चिह्नों की रक्षा कर लो। उपश्रेणिकको तब निश्चय हो गया कि इन सब पुत्रोंमें श्रेणिक हो एक ऐसा भाग्यशाली है जो मेरे राज्यको अच्छी तरह चलायेगा। उपश्रेणिकने तब उसकी रक्षाके लिये उसे यहाँसे कहों भेज देना उचित समझा । उन्हें इस बातका खटका था कि मैं राज्यका मालिक तिलकावतीके पुत्रको बना चुका है, और ऐसी दशामें श्रेणिक यहाँ रहा तो कोई असंभव नहीं कि इसकी तेजस्विता, इसको बुद्धिमानी, इसको कार्यक्षमताको देखकर किसीको डाह उपज जाय और उस हालतमें इसका कुछ अनिष्ट हो जाय । इसलिये जब तक यह अच्छा हुशियार न हो जाये तब तक इसका कहीं बाहर रहना ही उत्तम है। फिर यदि इसमें बल होगा तो यह स्वयं राज्यको हस्तगत कर सकेगा। इसके लिये उपश्रेणिकने श्रेणिकके सिर पर यह अपराध मढ़ा कि इसने कुत्तोंका झंठा खाया है, इसलिये अब यह राजघरानेमें रहने योग्य नहीं रहा। मैं इसे आज्ञा करता हूँ कि यह मेरे राज्यसे निकल जाये । सच है, राजे लोग बड़े विचारके साथ काम करते हैं। निरपराध श्रेणिक पिताकी आज्ञा पा उसो समय राजगृहसे निकल गया। फिर एक मिनटके लिये भी वह वहाँ न ठहरा। ___ श्रेणिक यहाँसे चलकर कोई दुपहरके समय नन्द नामक गाँवमें पहुंचा । यहाँके लोगोंको श्रेणिकके निकाले जानेका हाल मालूम हो गया था, इसलिये राजद्रोहके भयसे उन्होंने श्रेणिकको अपने गाँवमें न रहने दिया। श्रेणिकने तब लाचार हो आगेका रास्ता लिया। रास्तेमें इसे एक संन्यासियों का आश्रम मिला । इसने कुछ दिनों यहीं अपना डेरा जमा दिया। मठमें यह रहता और संन्यासियोंका उपदेश सुनता। मठका प्रधान संन्यासी बड़ा विद्वान् था । श्रेणिक पर उसका बहुत असर पड़ा। उसने तब वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया। श्रेणिक और कुछ दिनों तक यहाँ ठहरा । इसके बाद वह यहाँसे रवाना होकर दक्षिण दिशाकी ओर बढ़ा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy