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________________ ३७८ आराधना कथाकोश दुष्ट था कि वैसे तो वह चलता हो न था और उसे जरा ही ऐड़ लगाई या लगाम खींची कि बस वह फिर हवासे बातें करने लगता था । दुष्टोंकी ऐसी गति हो इसमें कोई आश्चर्य नहीं । उपश्रेणिक एक दिन इसी घोड़े पर सवार हो हवा खोरीके लिये निकले । इन्होंने बैठते हो जैसे उसकी लगाम तानी कि वह हवा हो गया। बड़ी देर बाद वह एक अटवी में जाकर ठहरा | उस अटवोका मालिक एक यमदण्ड नामका भील था, जो दीखनेमें सचमुच ही यमसा भयानक था । इसके तिलकावतो नामकी एक लड़की थी । तिलकावती बड़ो सुन्दरी थी । उसे देख यह कहना अनुचित न होगा कि कोयले की खान में हीरा निकला । कहां काला भुखंड यमदण्ड और कहाँ स्वर्गकी अप्सराओंको लजानेवाली इसकी लड़की चन्द्रवदनी तिलकावती ! अस्तु, इस भुवन सुन्दर रूपराशिको देखकर उपश्रेणिक उसपर मोहित हो गये । उन्होंने तिलकावतीके लिए यमदण्डसे मंगनी की । उत्तर में यमदण्डने कहा- राज राजेश्वर, इसमें कोई सन्देह नहीं कि मैं बड़ा भाग्यवान् हूँ । जब कि एक पृथिवीके सम्राट मेरे जमाई बनते हैं । और इसके लिये मुझे बेहद खुशी है । मैं अपनी पुत्रीका आपके साथ ब्याह करूँ, इसके पहले आपको एक शर्त करनी होगी और वह कि आप राज्य तिलकावती से होनेवाली सन्तानको दें । उपश्रेणिकने यमदण्डकी इस बातको स्वीकार कर लिया । यमदण्डने भी तब अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार उसका ब्याह उपश्रेणिकसे कर दिया । उपश्रेणिक फिर तिलकावतीको साथ ले राजगृह आ गये । कुछ समय सुखपूर्वक बीतने पर तिलकावतीके एक पुत्र हुआ । उसका नाम रखा गया चिलातपुत्र । एक दिन उपश्रेणिकने विचार कर, कि मेरे इन पुत्रों में राजयोग किसको है, एक निमित्तज्ञानीको बुलाया और उससे पूछा- पंडितजी, अपना निमित्तज्ञान देखकर बतलाइए कि मेरे इतने पुत्रोंमें राज्य-सुख कौन भोग सकेगा ? निमित्तज्ञानीने कहा - महाराज, जो सिंहासन पर बैठा हुआ नगारा बजाता रहे और दूर हीसे कुत्तोंको खीर खिलाता हुआ आप भी खाता रहे और आग लगने पर सिंहासन, छत्र, चवँर आदि राज्य चिह्नोंको निकाल ले भागे, वह राज्य लक्ष्मीका सुख भोग करेगा । इसमें आप किसी तरहका सन्देह न समझें । उपश्रेणिकने एक दिन इस बातकी परीक्षा करनेके लिये अपने सब पुत्रोंको खीर खानेके लिये बैठाया । उनके पास ही सिंहासन और एक नगारा भी रखवा दिया। पर यह किसीको पता न पड़ने दिया कि ऐसा क्यों किया गया । सब कुमार भोजन करनेको बैठे और खाना उन्होंने आरम्भ किया, कि इतने - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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