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________________ ३८० आराधना कथाकोश ___ इस समय दक्षिणकी राजधानी काँची थी। काँचीके राजा वसुपाल थे । उनको रानीका नाम वसुमती था। इनके वसुमित्रा नामकी एक सुन्दर और गुणवती पुत्री थी। यहाँ एक सोमशर्मा ब्राह्मण रहता था, सोमशर्माकी स्त्रीका नाम सोमश्री था। इसके भी एक पुत्री थी। इसका नाम अभयमती था। अभयभती बड़ी बुद्धिमती थी। __एक बार सोमशर्मा तीर्थयात्रा करके लौट रहा था। रास्ते में उसे श्रेणिकने देखा । कुछ मेल-मुलाकात और बोल चाल हुए बाद जब ये • दोनों चलनेको तैयार हए तब श्रेणिकने सोमशर्मासे कहा-मामाजी, आप भी बड़ी दूरसे आते हैं और मैं भी बड़ी दूरसे चला आ रहा हूँ, इसलिये हम दोनों ही थक चुके हैं । अच्छा हो यदि आप मुझे अपने कन्धे पर बैठा लें और आप मेरे कन्धे पर बैठ कर चलें तो। श्रेणिककी यह बे-सिर पैरकी बात सुनकर सोमशर्मा बड़ा चकित हुआ। उसने समझा कि यह पागल हो गया जान पड़ता है। उसने तब श्रेणिककी बातका कुछ जबाब न दिया। थोड़ी दूर चुपचाप आगे बढ़ने पर श्रेणिकने दो गांवोंको देखा। उसने तब जो छोटा गांव था उसे तो बड़ा बताया और जो बड़ा था उसे छोटा बताया। रास्ते में श्रेणिक जहां सिर पर कड़ो धूप पड़ती वहां तो छत्री उतार लेता और जहाँ वक्षोंकी ठंडी छाया आतो वहाँ छत्रीको चढ़ा लेता। इसी तरह जहाँ कोई नदी-नाला पड़ता तब तो वह जूतियोंको पाँवोंमें पहर लेता और रास्तेमें उन्हें हाथमें लेकर नंगे पैरों चलता। आगे चलकर उसने एक स्त्रीको पति द्वारा मार खाती देखकर सोमशर्मासे कहा-क्यों मामाजी, यह जो स्त्री पिट रही है वह बंधी है या खुली ? आगे एक मरे पुरुषको देखकर उसने पूछा कि यह जीता है या मर गया ? थोड़ी दूर चलकर इसने एक एक धान के पके हुये खेतको देखकर कहा-इसे इसके मालिकोंने खा लिया है। या वे अब खायेंगे? इसी तरह सारे रास्तेमें एकसे एक असंगत और बे-मतलबके प्रश्न सुनकर बेचारा सोमशर्मा ऊब गया। राम-राम करते वह घर पर आया । श्रेणिकको वह शहर बाहर हो एक जगह बैठाकर यह कह आया कि मैं अपनी लड़कीसे पूछकर अभी आता हूँ, तबतक तुम यहीं बैठना। अभयमती अपने पिताको आया देख बड़ी खुश हुई। उन्हें कुछ खिला-पिला कर उसने पूछा-पिताजी, आप अकेले गये थे और अकेले ही आये हैं क्या ? सोमशर्माने कहा-बेटा, मेरे साथ एक बड़ा हो सुन्दर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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