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________________ सम्यग्दर्शनके प्रभाव की कथा प्रसन्न हुई । उसने तब उसी समय आकर उस भयंकर आगको देखते-देखते बुझा दिया । इस अतिशयको देखकर रुद्रदत्त वगैरह बड़े चकित हुए । उन्हें विश्वास हुआ कि जैनधर्म ही सच्चा धर्म है। उन्होंने फिर सच्चे मनसे जैनधर्म की दीक्षा ले श्रावकों के व्रत ग्रहण किये। जैनधर्मको खूब प्रभावना हुई । सच है, संसार श्रेष्ठ जैनधर्मको महिमाको कौन कह सकता है जो कि स्वर्ग- मोक्षका देनेवाला है । जिस प्रकार जिनमतीने अपने सम्यक्त्वकी रक्षा की उसी तरह अन्य भव्यजनों को भी सुख प्राप्ति के लिये पवित्र सम्यग्दर्शनको सदा सुरक्षा करते रहना चाहिये । जिनेन्द्र भगवान् के चरणों में जिनमतीकी अचल भक्ति, उसके हृदयकी पवित्रता और उसका दृढ़ विश्वास देखकर स्वर्ग के देवोंने दिव्य वस्त्राभूषणोंसे उसका खूब आदर-मान किया । और सच भी है, सच्चे जिनभक्त सम्यग्दृष्टिकी कौन पूजा नहीं करते । ३७७ १०७. सम्यग्दर्शन के प्रभावकी कथा जो सारे संसारके देवाधिदेव हैं और स्वर्गके देव जिनकी भक्ति से पूजा किया करते हैं उन जिन भगवान्‌को प्रणाम कर महारानी चेलिनी और श्रेणिकके द्वारा होनेवाली सम्यक्त्व के प्रभावकी कथा लिखी जाती है । उपश्रेणिक मगधके राजा थे । राजगृह मगधकी तत्र खास राजधानी थी । उपश्रेणिककी रानीका नाम सुप्रभा था । श्रेणिक इसीके पुत्र थे । श्रेणिक जैसे सुन्दर थे जैसे ही उनमें अनेक गुण भी थे । वे बुद्धिमान थे, बड़े गम्भीर प्रकृति के थे, शूरवीर थे, दानो थे और अत्यन्त तेजस्वी थे । 1 मगध राज्यको सीमा से लगते ही एक नागधर्मं नामके राजाका राज्य था । नागदत्तकी और उपश्रेणिककी पुरानो शत्रुता चली आती थी । नागदत्त उसका बदला लेनेका मौका तो सदा हो देखता रहता था, पर इस समय उसका उपश्रेणिकके साथ कोई भारी मनमुटाव न था । वह कपटसे उपश्रेणिकका मित्र बना रहता था । यही कारण था कि उसने एक बार उपश्रेणिकके लिये एक दुष्ट घोड़ा भेंट में भेजा । घोड़ा इतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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