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________________ ३ ७२ आराधना कथाकोश उज्जैनके राजा धनवर्मा और उनकी रानी धनश्रीके लकुच नामका एक पुत्र था। लकुच बड़ा अभिमानी था। पर साथमें वीर भी था। उसे लोग मेघकी उपमा देते थे। इसलिए कि वह शत्रुओंकी मान रूपी अग्निको बुझा देता था, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना उसके बायें हाथका खेल था। ___ कालमेघ नामके म्लेच्छ राजाने एक बार उज्जैन पर चढ़ाई की थी। अवन्ति देशकी प्रजाको तब जन-धनकी बहुत हानि उठानी पड़ी थी। लकुचने इसका बदला चुकानेके लिए कालमेघके देश पर भी चढ़ाई कर दी। दोनों ओरसे घमासान युद्ध होने पर विजयलक्ष्मी लकूचकी गोद में आकर लेटी। लकुचने तब कालमेघको बांध लाकर पिताके सामने रख. दिया। धनवर्मा अपने पुत्रकी इस वीरताको देखकर बड़े खुश हुए। इस खुशीमें धनवर्माने लकुचको कुछ वर देनेकी इच्छा जाहिर की । पर उसकी प्रार्थनासे वरको उपयोग में लानेका भार उन्होंने उसीको इच्छा पर छोड़ दिया । अपनी इच्छाके माफिक करनेकी पिताकी आज्ञा पा लकुचकी आँखें फिर गई। उसने अपनी इच्छाका दुरुपयोग करना शुरू किया । व्यभिचारकी ओर उसकी दृष्टि गई। तब अच्छे-अच्छे घरानेकी सुशील स्त्रियाँ उसकी शिकार बनने लगीं। उनका धर्म भ्रष्ट किया जाने लगा। अनेक सतियोंने इस पापीसे अपने धर्मकी रक्षाके लिए आत्महत्याएँ तक कर डालीं। प्रजाके लोग तंग आ गये। वे महाराजसे राजकुमारकी शिकायत तक करने नहीं पाते । कारण राजकुमारके जासूस उज्जैनके कोने-कोनेमें फैल रहे थे, इसलिए जिसने कुछ राजकुमारके विरुद्ध जबान हिलाई या विचार भी किया कि वह बेचारा फौरन ही मौतके मुंहमें फेंक दिया. जाता था। यहाँ एक पुगल नामका सेठ रहता था। इसकी स्त्रीका नाम नागदत्ता था । नागदत्ता बड़ी खूबसूरत थी । एक दिन पापी ल.कुचकी इस पर आँखें चली गईं। बस, फिर क्या देर थी? उसने उसी समय उसे प्राप्त कर अपनी नीच मनोवृत्तिकी तृप्ति की। पुगल उसकी इस नीचतासे सिरसे पांव तक जल उठा। क्रोधकी आग उसके रोम-रोममें फैल गई। वह राजकुमारके दबदबेसे कुछ करने-धरनेको लाचार था । पर उस दिनकी बाट वह बड़ी आशासे जोह रहा था। जिस दिन कि वह लकुचसे उसके कर्मोका भरपूर बदला चुका कर अपनी छाती ठण्डी करे । एक दिन लकुच वन क्रीड़ाके लिए गया हुआ था। भाग्यसे वहाँ उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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