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________________ धर्मानुराग-कथा ३७१ गंध और वर्ण ये बातें पाई जाँय वह मूर्त्तिक है और जिसमें ये न हों वह अमूर्ति है । उक्त पाँच द्रव्योंमें सिर्फ पुद्गल तो मूर्तिक है अर्थात् इसमें उक्त चारों बातें सदासे हैं और रहेंगी - कभी उससे जुदा न होंगी। इसके सिवा धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये अमूर्त्तिक हैं। इन सब विषयोंका विशेष खुलासा अन्य जैन ग्रन्थों में किया है । प्रकरणवश तुम्हें यह सामान्य स्वरूप कहा । विश्वास है अपने हित के लिये इसे ग्रहण करनेका यत्न करोगे । सोमशर्माको यह उपदेश बहुत पसन्द पड़ा । उसने मिथ्यात्वको छोड़कर सम्यक्त्व को स्वीकार कर लिया। इसके बाद जिनदत्त वसुमित्रकी तरह वह भी संन्यास ले भगवान्‌का ध्यान करने लगा । सोमशर्माको भूखप्यास, डाँस मच्छर आदिकी बहुत बाधा सहनी पड़ी। उसे उसने बड़ी धीरता के साथ सहा । अन्तमें समाधिसे मृत्यु प्राप्त कर वह सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ । वहाँसे श्रेणिक महाराजका अभयकुमार नामका पुत्र हुआ । अभयकुमार बड़ा ही धीर-वीर और पराक्रमी था, परोपकारी था । अन्तमें वह कर्मों का नाश कर मोक्ष गया । 1 सोमशर्मा की मृत्युके कुछ ही दिनों बाद जिनदत्त और वसुमित्रको भी समाधि मृत्यु हुई । वे दोनों भी इसी सौधर्म स्वर्ग में, जहाँ कि सोमशर्मा देव हुआ था, देव हुए। संसारका उपकार करनेवाले और पुण्यके कारण जिनके उपदेश किये antar समय में भी धारण कर भव्यजन उस कठिनसे कठिन सुखको, जिसके कि प्राप्त करनेकी उन्हें स्वप्न में भी आशा नहीं होतो, प्राप्त कर -लेते हैं, वे सर्वज्ञ भगवान् मुझे वह निर्मल सुख दें, जिस सुखकी इन्द्र, चक्री और विद्याधर राजे पूजा करते हैं । १०४. धर्मानुराग-कथा जो निर्मल केवलज्ञान द्वारा लोक और अलोकके जानने देखनेवाले हैं, सर्वज्ञ हैं, उन जिनेन्द्र भगवान्‌को नमस्कार कर धर्मसे.. अनुराग करनेवाले राजकुमार लकुचकी कथा लिखी जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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