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________________ सम्यग्दर्शन पर दृढ़ रहनेवालेकी कथा ३७३ मुनिराजके दर्शन हो गये। उसने उनसे धर्मका उपदेश सुना। उपदेशका प्रभाव उस पर खूब पड़ा। इसलिए वह वहीं उनसे दीक्षा ले मुनि हो गया। उधर पुगल ऐसे मौकेको आशा लगाये बैठा ही था, सो जैसे ही उसे लकुचका मुनि होना जान पड़ा वह लोहेके बड़े-बड़े तीखे कोलोंको लेकर लकुच मुनिके ध्यान करनेकी जगह पर आया। इस समय लकुच मुनि ध्यान में थे। पुंगल तब उन कोलोंको मुनिके शरीरमें ठोक कर चलता बना । लकुच मुनिने इस दुःसह उपसर्गको बड़ी शान्ति, स्थिरता और धर्मानुरागसे सह कर स्वर्ग लोक प्राप्त किया। सच है, महात्माओंका चरित्र विचित्र ही हुआ करता है । वे अपने जीवनको गतिको मिनट भरमें कुछको कुछ बदल डालते हैं। वे लकुच मुनि जयलाभ करें, कर्मोको जीतें, जिन्होंने असह्य कष्ट सहकर जिनेन्द्र भगवान् रूपी चन्द्रमाको उपदेश रूपी अमृतमयी किरणोंसे स्वर्गका उत्तम सुख प्राप्त किया, गुणरूपो रत्नोंके जो पर्वत हुए और ज्ञानके गहरे समुद्र कहलाये। १०५. सम्यग्दर्शन पर दृढ़ रहनेवालेकी कथा सब प्रकारके दोषोंसे रहित जिन भगवान्को नमस्कार कर सम्यग् दर्शनको खूब दृढ़ताके साथ पालन करनेवाले जिनदास सेठको पवित्र कथा लिखी जाती है। प्राचीन कालसे प्रसिद्ध पाटलिपुत्र (पटना) में जिनदत्त नामका एक प्रसिद्ध और जिनभक्त सेठ हो चुका है। जिनदत्त सेठकी स्त्रीका नाम जिनदासी था। जिनदास, जिसकी कि यह कथा है, इसोका पुत्र था। अपनी माताके अनुसार जिनदास भी ईश्वर प्रेमी, पवित्र हृदयी और अनेक गुणोंका धारक था। एक बार जिनदास सुवर्ण द्वीपसे धन कमाकर अपने नगरको ओर आ रहा था। किसी काल नामके देवकी जिनदासके साथ कोई पूर्व जन्मकी शत्रुता होगी और इसलिए वह देव इसे मारना चाहता होगा। यही कारण था कि उसने कोई सौ योजन चौड़े जहाज पर बैठे-बैठे ही जिनदास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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