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________________ जिनाभिषेकसे प्रेम करनेवालेको कथा ३६१ १०३. जिनाभिषेकसे प्रेम करनेवालेकी कथा इन्द्रादिकों द्वारा जिनके पाँव पूजे जाते हैं, ऐसे जिन भगवान्को नमस्कार कर जिनाभिषेकसे अनुराग करनेवाले जिनदत्त और वसुमित्रकी कथा लिखो जाती है। उज्जैनके राजा सागरदत्तके समय उनकी राजधानी में जिनदत्त और वसुमित्र नामके दो प्रसिद्ध और बड़े गुणवान् सेठ हो गये हैं। जिनधर्म और जिनाभिषेक पर उनका बड़ा ही अनुराग था। ऐसा कोई दिन उनका खाली न जाता था जिस दिन वे भगवान्का अभिषेक न करते हों, पूजा प्रभावना न करते हों, दान-व्रत न करते हो। एक दिन ये दोनों सेठ व्यापारके लिये उज्जैनसे उत्तरको ओर रवाना हुए। मंजिल दर मंजिल चलते ये एक ऐसी घनी अटवोमें पहँच गये, जो दोनों बाजू आकाशसे बातें करनेवाले अवसीर और माला पर्वत नामके पर्वतोंसे घिरो थी और जिसमें डाकू लोगोंका अड्डा था। डाकू लोग इनका सब माल असबाब छोनकर हवा हो गये। अब ये दानों उस अटवीमें इधर-उधर घूमने लगे। इसलिये कि इन्हें उससे बाहर होनेका रास्ता मिल जाय । पर इनका सब प्रयत्न निष्फल गया। न तो ये स्वयं रास्तेका पता लगा सके और न कोई इन्हें रास्ता बतानेवाला ही मिला। अपने अटवी बाहर होनेका कोई उपाय न देखकर अन्तमें इन जिनपूजा और जिनाभिषेकसे अनुराग करनेवाले महानुभावोंने संन्यास ले लिया और जिन भगवान्का ये स्मरण-चिन्तन करने लगे । सच है, सत्पुरुष सुख और दुःखमें सदा समान भाव रखते हैं, विचारशील रहते हैं । एक और अभागा भूला भटका सोमशर्मा नामका ब्राह्मण इस अटवीमें आ फँसा । घूमता-फिरता वह इन्हींके पास आ गया। अपनो-सी इस . बेचारे ब्राह्मणकी दशा देखकर ये बड़े दिलगीर हुए। सोमशर्मासे इन्होंने सब हाल कहा और यह भी कहा-यहाँसे निकलनेका कोई मार्ग प्रयत्न करने पर भी जब हमें न मिला तो हमने अन्तमें धर्मका शरण लिया। इसलिये कि यहाँ हमारी मरने सिवा कोई गति हो नहीं है और जब हमें मृत्युके सामने होना ही है तब कायरता और बुरे भावोंसे क्यों उसका सामना करना, जिससे कि दुर्गतिमें जाना पड़े। धर्म दुःखोंका नाश कर सुखोंका देनेवाला है । इसलिये उसीका ऐसे समयमें आश्रय लेना परम हितकारी है । हम तुम्हें भी सलाह देते हैं कि तुम भी सुगतिकी प्राप्तिके लिये धर्मका आश्रय ग्रहण करो । इसके बाद उन्होंने सोमशर्माको धर्मका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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