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________________ ३६८ आराधना कथाकोश धर्मपाल राजा बहुत प्रसन्न हुए। वे अब मोक्षसुखकी इच्छासे संसारकी सब माया ममताको छोड़कर जिनदीक्षा ले साधु हो गए और बहुतसे लोगोंने-जो जैन नहीं थे, जैनधर्मको ग्रहण किया। संसारके बड़े-बड़े महापुरुषोंसे पूजे जानेवाला, जिनेन्द्र भगवानका उपदेश किया पवित्र धर्म, स्वर्गमोक्षके सुखका कारण है इसीके द्वारा भव्यजन उत्तमसे उत्तम सुख प्राप्त करते हैं। यही पवित्र धर्म कर्मोका नाश कर मुझे आत्मिक सच्चा सुख प्रदान करे । १०२. प्रेमानुराग-कथा जो जिनधर्मके प्रवर्तक हैं, उन जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर धर्मसे प्रेम करनेवाले सुमित्र सेठकी कथा लिखो जाती है। अयोध्याके राजा सुवर्णवर्मा और उनकी रानी सूवर्णश्रीके समय अयोध्यामें सुमित्र नामके एक प्रसिद्ध सेठ हो गये हैं। सेठका जैनधर्म पर अत्यन्त प्रेम था। एक दिन सुमित्र सेठ रातके समय अपने घर हीमें कायोत्सर्ग ध्यान कर रहे थे। उनकी ध्यान-समयकी स्थिरता और भावोंकी दृढ़ता देखकर किसो एक देवने सशंकित हो उनकी परीक्षा करनी चाही कि कहीं यह सेठका कोरा ढोंग तो नहीं है। परीक्षामें उस देवने सेठको सारी सम्पत्ति, स्त्रो, बाल-बच्चे आदिको अपने अधिकारमें कर लिया। सेठके पास इस बातको पुकार पहुंची । स्त्री, बाल-बच्चे रो-रोकर उसके पाँवोंमें जा गिरे और छुड़ाओ, छुड़ाओको हृदय भेदनेवाली दोन प्रार्थना करने लगे। जो न होनेका था वह सब हुआ। परन्तु सेठजीने अपने ध्यानको अधूरा नहीं छोड़ा, वे वैसे ही निश्चल बने रहे। उनकी यह अलौकिक स्थिरता देखकर उस देवको बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने सेठ को शतमुखसे भूरि-भूरि प्रशंसा की। अन्तमें अपने निज स्वरूपमें आ और सेठको एक सांकरी नामकी आकाशगामिनी विद्या भेंट कर आप स्वर्ग चला गया। सेठके इस प्रभावको देखकर बहुतेरे भाइयोंने जैनधर्मको ग्रहण किया, कितनोंने मुनिव्रत, कितनोंने श्रावकव्रत और कितनोंने केवल सम्यग्दर्शन ही लिया। जिन भगवान्के चरण-कमल परम सुखके देनेवाले हैं और संसारसमुद्रसे पार करनेवाले हैं, इसलिये भव्यजनोंको उचित है कि वे सुख प्राप्तिके लिये उनकी पूजा करें, स्तुति करें, ध्यान करें, स्मरण करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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