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________________ धन्य मुनिको कथा ३०५ दिया करता और रसोई घरमें रसोई बनानेवाली स्त्रियोंके स्तन बंधवा कर उनके बच्चे को दूध न पीने देता था। सच है, लोभी मनुष्य कौनसा पाप नहीं करते ? एक दिन अशोकके मुंहमें कोई ऐसी बीमारी हो गई जिससे उसका सारा मुंह आ गया। सिरमें भी हजारों फोड़े-फुन्सी हो गए। उससे उसे बड़ा कष्ट होने लगा। उसने उस रोग की औषधि बनवाई। वह उसे पोनेको ही था कि इतने में अपने चरणोंसे पृथ्वीको पवित्र करते हुए एक मुनि आहारके लिए इसी ओर आ निकले। भाग्यसे ये मुनि भी राजाकी तरह इसी महारोगसे पीड़ित हो रहे थे। इन तपस्वी मुनिकी यह कष्टमय दशा देखकर राजाने सोचा कि जिस रोगसे मैं कष्ट पा रहा हूँ, जान पड़ता है उसी रोगसे ये तपोनिधि भी दुःखी हैं । यह सोचकर या दयासे प्रेरित होकर राजा जिस दवाको स्वयं पीनेवाला था, उसे उसने मुनिराजको पिला दिया और साथ ही उन्हें पथ्य भी दिया। दवाने बहुत लाभ किया। बारह वर्षका यह मुनिका महारोग थोड़े ही समयमें मिट गया, मुनि भले चंगे हो गए।। ___ अशोक जब मरा तो इस पुण्यके फलसे वह अमलकण्ठपुरके राजा निष्ठसेनको रानी नन्दमतोके धन्य नामका सुन्दर गुणवान् पुत्र हुआ। धन्यको एक दिन श्रीनेमिनाथ भगवान्के पास धर्मका उपदेश सुननेका मौका मिला । वह भगवान्के द्वारा अपनी उमर बहुत थोड़ी जानकर उसी समय सब माया ममता छोड़ मुनि बन गया। एक दिन वह शहरमें भिक्षाके लिए गया, पर पूर्वजन्मके पाप कर्मके उदयसे उसे भिक्षा न मिली । वह वैसे ही तपोवनमें लौट आया । यहाँसे विहार कर वह तपस्या करता तथा धर्मोपदेश देता हुआ सौरीपुर आकर यमनाके किनारे आतापन योग द्वारा ध्यान करने लगा। इसी ओर यहाँका राजा शिकारके लिए आया हुआ था, पर आज उसे शिकार न मिला। वह वापिस अपने महलकी ओर आ रहा था कि इसी समय इसकी नजर मुनि पर पड़ी। इसने समझ लिया कि बस, शिकार न मिलनेका कारण इस नंगेका दीख पड़ना है, इसीने यह अशकुन किया है। यह धारणा कर इस पापी राजाने मुनिको बाणोंसे खूब वेध दिया । मुनिने तब शुक्लध्यानकी शक्तिसे कर्मोंका नाश कर सिद्ध गति प्राप्त की। सच है, महापुरुषोंको धीरता बड़ी ही चकित करनेवाली होती है । जिससे महान् कष्टके समयमें भी मोक्षकी प्राप्ति हो जाती है । ___ वे धन्य मुनि रोग, शोक, चिन्ता आदि दोषोंको नष्ट कर मुझे शाश्वत, कभी नाश न होनेवाला सुख दें, जो भव्यजनोंका भय मिटानेवाले हैं, २० www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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