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________________ ३०४ आराधना कथाकोश दिनको रह गई है। ऐसे समय जिनदीक्षा लेकर तुझे अपना हित करना उचित ही है। मुनिराजसे अपनी जिन्दगी इतनी थोड़ी सुन उसने उसी समय तप ले लिया जो संसार-समुद्रसे पार करनेवाला है। चिलातपुत्र तप लेनेके साथ ही प्रायोपगमन संन्यास ले धोरतासे आत्मभावना भाने लगा। उधर उसके पकड़नेको पीछे आनेवाले श्रेणिकने वैभारपर्वत पर आकर उसे इस अवस्थामें जब देखा तब उसे चिलातपूत्रको इस धीरता पर बड़ा चकित होना पड़ा। श्रेणिकने तब उसके इस साहसकी बड़ो तारीफ की। इसके बाद वह उसे नमस्कार कर राजगृह लौट आया। चिलातपुत्रने जिस सुभद्राको मार डाला था, वह मरकर व्यन्तर देवी हुई। उसे जान पड़ा कि मैं चिलातपुत्र द्वारा बड़ी निर्दयतासे मारी गई हूँ। मुझे भी तब अपने बैरका बदला लेना ही चाहिए। यह सोचकर वह चोलका रूप ले चिलात मुनिके सिर पर आकर बैठ गई। उसने मुनिको कष्ट देना शुरू किया। पहले उसने चोंचसे उनकी दोनों आँखें निकाल ली और बाद मधुमक्खी बनकर वह उन्हें काटने लगी। आठ दिनतक उन्हें उसने बेहद कष्ट पहुंचाया। चिलातमुनिने विचलित न हो इस कष्टको बड़ी शान्तिसे सहा । अन्तमें समाधिसे मरकर उसने सर्वार्थसिद्धि प्राप्त की। जिस वीरोंके वीर और गुणोंको खान चिलात मुनिने ऐसा दुःसह उपसर्ग सहकर भी अपना धैर्य न छोड़ा और जिनेन्द्र भगवान्के चरणोंका, जो कि देवों द्वारा भी पूज्य हैं, खूब मन लगाकर ध्यान करते रहे और अन्तमें जिन्होंने अपने पुण्यबलसे सर्वार्थसिद्धि प्राप्त की वे मुझे भी मंगल दें। ७१. धन्य मुनिकी कथा सर्वोच्च धर्मका उपदेश करने वाले श्रीजिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर धन्य नामके मुनिकी कथा लिखी जाती है, जो पढ़ने या सुननेसे सुख प्रदान करनेवाली है। __ जम्बूद्वीपके पूर्वकी ओर बसे हुए विदेह क्षेत्रको प्रसिद्ध राजधानी वीतशोकपूरका राजा अशोक बड़ा ही लोभी राजा हो चुका है। जब फसल काटकर खेतों पर खले किए जाते थे तब वह बेचारे बैलोंका मुंह बँधवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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