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________________ ३०६ आराधना कथाकाश संसार समुद्रसे पार करनेवाले हैं, देवों द्वारा पूजा किये जाते हैं, मोक्षमहिलाके स्वामी हैं, ज्ञानके समुद्र हैं और चारित्र-चूड़ामणि हैं। ७२. पाँचसो मुनियोंकी कथा जिनेन्द्र भगवान्के चरणोंको नमस्कार कर पाँचसौ मुनियों पर एक साथ बीतनेवाली घटनाका हाल लिखा जाता है, जो कि कल्याणका कारण है। भरतके दक्षिणकी ओर बसे हुए कुम्भकारकट नामके पुराने शहरके राजाका नाम दण्डक और उनकी रानीका नाम सुव्रता था । सुव्रता रूपवती और विदुषी थी। राजमंत्रीका नाम बालक था। यह पापी जैनधर्मसे बड़ा द्वेष रखा करता था। एक दिन इस शहरमें पाँचसौ मनियोंका संघ आया। बालक मंत्रीको अपनी पण्डिताई पर बड़ा अभिमान था। सो वह शास्त्रार्थ करनेको मुनिसंघके आचार्यके पास जा रहा था। रास्तेमें इसे एक खण्डक नामके मुनि मिल गये। सो उन्हींसे आप झगड़ा करनेको बैठ गया और लगा अन्टसन्ट बकने। तब मुनिने इसकी युक्तियोंका अच्छी तरह खण्डन कर स्याद्वाद-सिद्धान्तका इस शैलीसे प्रतिपादन किया कि बालक मंत्रीका मुंह बन्द हो गया, उनके सामने फिर उससे कुछ बोलते न बना। झख मारकर तब उसे लज्जित हो घर लौट आना पड़ा । इस अपमानकी आग उसके हृदयमें खूब धधकी। उसने तब इसका बदला चुकानेकी ठानी। इसके लिए उसने यह युक्ति की कि एक भाँडको छलसे मुनि बनाकर सुव्रता रानीके महलमें भेजा। यह भाँड रानीके पास जाकर उससे भला-बुरा हंसी-मजाक करने लगा। इधर उसने यह सब लीला राजाको भी बतला दी और कहा-महाराज, आप इन लोगोंकी इतनी भक्ति करते हैं, सदा इनकी सेवामें लगे रहते हैं, तो क्या यह सब इसी दिनके लिए है ? जरा आँखें खोलकर देखिए कि सामने क्या हो रहा है ? उस भांडकी लीला देखकर मूर्खराज दण्डकके क्रोधका कुछ पार न रहा । क्रोधसे अन्धे होकर उसने उसी समय हुक्म दिया कि जितने मुनि इस समय मेरे शहर में मौजूद हों, उन सबको घानीमें पेल दो। पापी मंत्री तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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