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________________ २५२ आराधना कथाकोश किया है। इसलिए हमें तुम्हारा कृतज्ञ होना चाहिए। मित्रपनेके नातेसे तुमने जो कार्य किया है वैसा करनेके लिए तुम्हारे बिना और समर्थ ही कौन था ? इसलिए देवराज, तुम हो सच्चे धर्म-प्रेमो हो, जिन भगवान्के भक्त हो, और मोक्ष-लक्ष्मीकी प्राप्तिके कारण हो । सगर-सुतोंका इस प्रकार सन्तोष-जनक उत्तर पा मणिकेतु बहुत प्रसन्न हुआ। वह फिर उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार कर स्वर्ग चला गया। यह मुनिसंघ विहार करता हआ सम्मेदशिखर पर आया और यहीं कठिन तपस्या कर शुक्ल. ध्यानके प्रभावसे इसने निर्वाण लाभ किया। उधर भगीरथने जब अपने भाइयोंका मोक्ष प्राप्त करना सुना तो उसे भी संसारसे बड़ा वैराग्य हुआ। वह फिर अपने वरदत्त पुत्रको राज्य सौंप आप कैलास पर शिवगुप्त मुनिराजके पास दीक्षा ग्रहण कर मुनि हो गया। भगीरथने मुनि होकर गंगाके सुन्दर किनारों पर कभी प्रतिमायोगसे, कभी आतापन योगसे और कभी और किसी आसनसे खूब तपस्या की। देवता लोग उसकी तपस्यासे बहुत खुश हुए। और इसीलिए उन्होंने भक्तिके वश हो भगीरथके चरणोंका क्षोर-समुद्र के जलसे अभिषेक किया, जो कि अनेक प्रकारके सुखोंका देनेवाला है। उस अभिषेकके जलका प्रवाह बहता हुआ गंगामें गया। तभीसे गंगा तीर्थके रूपमें प्रसिद्ध हुई और लोग उसके स्नानको पुण्यका कारण समझने लगे। भगीरथने फिर कहीं अन्यत्र विहार न किया। वह वहीं तपस्या करता रहा और अन्तमें कर्मोंका नाशकर उसने जन्म, जरा, मरणादि रहित मोक्षका सुख भी यहींसे प्राप्त किया। ___ केवलज्ञानरूपी नेत्र द्वारा संसारके पदार्थों को जानने और देखनेवाले, देवों द्वारा पूजा किये गये और मुक्तिरूप रमणीरत्नके स्वामी श्रीसगर मुनि तथा जैनतत्त्वके परम विद्वान् वे सगरसुत मुनिराज मुझे वह लक्ष्मी दें, जो कभी नाश होनेवाली नहीं है और सर्वोच्च सुखको देनेवाली है। ५५. मृगध्वजकी कथा सारे संसार द्वारा भक्ति सहित पूजा किये गये जिन भगवान्को नमस्कार कर प्राचीनाचार्योंके कहे अनुसार मृगध्वज राजकुमारकी कथा लिखी जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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