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________________ २५१ सगर चक्रवर्तीकी कथा गये । इसके बाद मौका पाकर मणिकेतुने उन्हें संसारको दशा बतलाकर खूब उपदेश किया। अबकी बार वह सफल प्रयत्न हो गया। सगरको संसारको इस क्षण-भंगुर दशा पर बड़ा हो वैराग्य हुआ । उन्होंने भगोरथको राज देकर और सब माया-ममता छुड़ाकर दृढ़धर्म केवलो द्वारा दोक्षा ग्रहण कर ली, जो कि संसारका भटकना मिटाने वाली है।। सगरको दोक्षा लिए बाद हो मणिकेतु कैलास पर्वत पर पहुँचा और उन लड़कोंको माया-मौतसे सचेत कर बोला-सगर सुतों, जब आपको मृत्युका हाल आपके पिताने सुना तो उन्हें अत्यन्त दुःख हुआ। और इसी दुःखके मारे वे संसारको विनाशोक लक्ष्मोको छ'ड-छाड़कर साधु हो गये । में आपके कुलका ब्राह्मण हूँ। महाराजको दीक्षा ले जानेकी खबर प कर आपको ढूंढने को निकला था। अच्छा हआ जो आप मुझे मिल गये। अब आप राजधानी में जल्दो चलें। ब्राह्मणरूपधारो मणिकेतु द्वारा पिताका अपने लिए दीक्षित हो जाना सुनकर सगरसूतोंने कहा महाराज, आप जायें । हम लोग अब घर नहीं जायेंगे। जिस लिए पिताजी सब राज्यपाश छोड़कर साधु हो गये तब हम किस महसे उस राजको भोग सकते हैं ? हमसे इतनी कृतघ्नता न होगी, जो पिताजीके प्रेमका बदला हम ऐसा आराम भोग कर दें। जिस मार्गको हमारे पूज्य पिताजीने उत्तम समझकर ग्रहण किया है वही हमारे लिए भो शरण है। इसलिए कृपा कर आप हमारे इस समाचारको भैया भगीरथसे जाकर कह दोजिए कि वह हमारे लिए कोई चिन्ता न करें। ब्राह्मणसे इस प्रकार कहकर वे सब भाई दृढ़धर्म भगवान्के समवशरणमें आये और पिताकी तरह दोक्षा लेकर साधु बन गये । भगोरथको भाइयोंका हाल सुनकर बड़ा वैराग्य हुआ। उसको इच्छा भी योग ले लेने की हई, पर राज्य-प्रबन्ध उसी पर निर्भर रहनेसे वह . दीक्षा न ले सका। परन्तु उसने उन मुनियों द्वारा जिनधर्मका उपदेश सुनकर श्रावकोंके व्रत ग्रहण किये। मणिकेतुका सब काम जब अच्छो तरह सफल हो गया तब वह प्रगट हुआ और उन सब मुनियों को नमस्कार कर बोला-भगवन् आपका मैंने बड़ा भारी अपराध जरूर किया है। पर आप जैनधर्म के तत्वको यथार्थ जाननेवाले हैं। इसलिए सेवक पर क्षमा करें। इसके बाद मणिकेतुने आदिसे इति पर्यन्त सबको सब घटना कह सुनाई । मणिकेतुके द्वारा सब हाल सुनकर उन्हें बड़ो प्रसन्नता हुई। वे उससे बोले-देवराज, इसमें तुम्हारा अपराध क्या हुआ, जिसके लिए क्षमा को जाय ? तुमसे तो उलटा हमारा उपकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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