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________________ २५० आराधना कथाकोश बचाइये ! सगरने उसे इस प्रकार दुःखो देखकर धीरज दिया और कहाब्राह्मण देव, घबराइये मत वास्तवमें बात क्या है उसे कहिए। मैं तुम्हारे दुःख दूर करनेका यत्न करूंगा। ब्राह्मण कहा-महाराज क्या कहूँ ? कहते छ.ती फटी जातो है, मुहसे शब्द नहीं निकलता । यह कहकर वह फिर रोने लगा। चक्रवर्तीको इससे बड़ा दुःख हुआ । उसके अत्यन्त आग्रह करने पर मणिकेतु बोला-अच्छा तो महाराज, मेरो दुःख कथा सुनिएमेरे एक मात्र लड़का था । मेरो सव आशा उसी पर था। वहीं मुझे खिलाता-पिलाता था। पर मेरे भाग्य आज फट गये। उसे एक काल नामका एक लुटेरा मेरे हाथोंन जबरदस्ती छोन भागा। मैं बहुत रोया व कलपा, दयाको मैंने उससे भीख माँगो, बहुत आजू-मिन्नत की, पर उस पापी चाण्डालने मेरी आर आँख उठाकर भा न देखा । राजराजेश्वर, आपसे, मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि आप मेरे पुत्रको उस पापीसे छुड़ा ला दोजिए । नहीं तो मेरी जान न बचेगो। सगरको काल-लुटेरेका नाम सुनकर कुछ हंसी आ गई। उसने कहा-महाराज, आप बड़े भोले हैं । भला, जिसे काल ले जाता है, जो मर जाता है वह फिर कभी जोता हआ है क्या ? ब्राह्मण देव, काल किसीसे नहीं रुक सकता । वह तो अपना काम किये ही चला जाता है। फिर चाहे कोई बूढ़ा हो, या जवान हो, या बालक, सबके प्रति उसके समान भाव हैं । आप तो अभी अपने लड़केके लिए रोते हैं, पर मैं कहता हूँ कि वह तुम पर भी बहुत जल्दी सवारी करने वाला है। इसलिए यदि आप यह चाहते हों कि मैं उससे रक्षा पा स, तो इसके लिए यह उपाय कोजिए कि आप दीक्षा लेकर मुनि हो जायँ और अपना आत्महित करें। इसके सिवा काल पर विजय पानेका और कोई दूसरा उपाय नहीं है। सब कुछ सुन-सुनाकर ब्राह्मणने कुछ लाचारी बतलाते हुए कहा कि यदि यह बात सच है और वास्तवमें कालसे कोई मनुष्य विजय नहीं पा सकता तो लाचारो है। अस्तु, हाँ एक बात तो राजाधिराज, मैं आपसे कहना ही भूल गया और वह बड़ो हो जरूरी बात थी। महाराज, इस भूलकी मुझ गरीब पर क्षमा कीजिए। बात यह है कि मैं रास्ते में आता-आता सुनता आ रहा हूँ, लोग परस्परमें बातें करते हैं कि हाय ! बड़ा बुरा हुआ जो अपने महाराजके लड़के कैलास पर्वतकी रक्षाके लिए खाई खोदनेको गये थे, वे सबके सब हो एक साथ मर गये । ब्राह्मणका कहना पूरा भी न हुआ कि सगर एकदम गश खाकर गिर पड़े। सच है, ऐसे भयंकर दुःख-समाचारसे किसे गश न आ आयगा, कौन मूच्छित न होगा। उसी समय उपचारों द्वारा सगर होशमें लाये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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