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________________ २२६ आराधना कथाकोश असंभव है । तब क्या में उसीके हाथों मारा जाऊँगा ? नहीं, जब तक मुझमें दम है, मैं उसे बिना मारे कभी नहीं छोड़ गा । देवियाँ आखिर यी तो स्त्री जाति ही न ? जो स्वभावसे हो कायर-डरपोक होती हैं, वे बेचारी एक वीर पुरुषको क्या मार सकेंगी! अस्तु, अब मैं स्वयं उसके मारने का यत्न करता हूँ । फिर देखता हूँ कि वह कहाँ तक मुझसे बचता है । आखिर वह है एक गुवालका छोकरा और मैं वोर राजपूत ! तब क्या मैं उसे न मार सकूँगा ? यह असम्भव है । उद्यमसे सब काम सिद्ध हो जाते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं । कंसने अपने मनकी खूब समझौती कर वासुदेवके मारने की एक नई योजना की । उसके यहाँ दो बड़े प्रसिद्ध पहलवान थे । उनके साथ कुश्ती लड़कर जीतनेवालेको एक बड़ा भारी पारितोषिक देना उसने प्रसिद्ध किया । कंसने सोचा था कि पहले तो मेरे ये पहलवान ही उसे मच्छरको तरह पीस डालेंगे और कोई दैवयोगसे इनके हाथसे वह बच भी गया तो मैं तो उसकी छाती पर ही तलवार लिये खड़ा रहूँगा, सो उस समय उसका सिर धड़से जुदा करने में मुझे देर ही क्या लगेगी ? इससे बढ़कर और कोई उपाय शत्रुके मारनेका नहीं है कंसको इस विचारसे बड़ा धीरज । बँधा । कुश्तीका जो दिन नियत था, उस दिन नियत किये स्थान पर हजारों आलम ठसाठस भर गये । सारी मथुरा उस वोरके देखनेको उमड़ पड़ी कि देखें इन पहलवानोंके साथ कौन वीर लड़ेगा । सबके मन बड़े उत्सुक हो उठे । आँखें उस वीर पुरुषकी बाट जोहने लगीं । पर उन्हें अब तक कोई लड़ने को तैयार नहीं देख पड़ा । कंसका मन कुछ निराश होने लगा । कुश्ती का समय भी बहुत नजदीक आ गया । पर अभी तक उसने किस को अखाड़े में उतरते नहीं देखा। यह देख उसकी छाती धड़की । लोग जानेकी तैयारीहीमें होंगे कि इतने में एक चीबोस पच्चीस वर्षका जवान भीड़को चीरता हुआ आया और गजंकर बोला- हाँ जिसे कुश्ती लड़ना हो वह अखाड़े में उतर कर अपना बल बतावे ! उपस्थित मंडली इस आये हुए पुरुषकी देव दुर्लभ सुन्दरता और वीरताको देखकर दंग रह गई । बहुतों - को उसकी छोटो उमर और सुन्दरता तथा उन पहलवानोंको भीम काय देखकर नाना तरह की कुशंका भी होने लगी । और साथ ही उनका हृदय सहानुभूति से भर आया । पर उसे रोक देनेका उनके पास कोई उपाय न था । इसलिए उन्हें दुःख भी हुआ। जो हो, आगन्तुक युवाकी उस हृदय 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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