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________________ धनके लोभसे भ्रममें पड़े कुबेरदत्तकी कथा १९७ समझ कर संसार और विषयभोगोंसे बड़े विरक्त हो गये। उन्होंने अपने मणिचन्द्र पुत्रको राज्यका सब कारवार सौंप दिया और आप भगवान्की पूजा, अभिषेक कर तथा याचकोंको दान दे जंगलकी ओर रवाना हो गये और दीक्षा लेकर तपस्या करने लगे। वे अब दिनोंदिन आत्माको पवित्र बनाते हुए परमात्म-स्मरणमें लीन रहने लगे। ___ मणिवत मुनि नाना देशों में धर्मोपदेश करते हुए एक दिन उज्जैनके बाहर मसानमें आये। रातके समय वे मतक शय्या द्वारा ध्यान करते हुए शान्तिके लिए परमात्माका स्मरण-चिन्तन कर रहे थे। इतनेमें वहाँ एक कापालिक वैतालीविद्या साधनके लिए आया। उसे चला बनानेके लिए तीन मौकी जरूरत पड़ी। सो एक तो उसने मुनिको समझ लिया और दो मुर्दोको वह और घीस लाया । उन तीनोंके सिरका चूल्हा बनाकर उस पर उसने एक नर-कपाल रक्खा और आग सुलगाकर कुछ नैवेद्य पकाने लगा। थोड़ी देर बाद जब आग जोरसे चेती और मुनिकी नसें जलने लगीं तब एकदम मुनिका हाथ ऊपरको ओर उठ जानेसे सिरपरका कपाल गिर पड़ा । कापालिक उससे डरकर भाग खड़ा हुआ। मुनिराज मेरु समान वैसेके वैसे ही अचल बने रहे। सबेरा होने पर किसी आतेजाते मनुष्यने मनिकी यह दशा देख जिनदत्तको यह सब हाल कह सुनाया। जिनदत्त उसो समय दौड़ा-दौड़ा मसानमें गया। मुनिकी दशा देखकर उसे बेहद दुःख हुआ। मुनिको अपने घर पर लाकर उसने एक प्रसिद्ध वैद्यसे उनके इलाजके लिए पूछा। वैद्य महाशयने कहा-सोमशर्मा भट्टके यहाँ लक्षपाक नामका बहुत ही उम्दा तैल है, उसे लाकर लगाओ। उससे बहुत जल्दी आराम होगा, आगका जला उससे फौरन आराम होता है । सेठ सोमशर्माके घर दौड़ा हुआ गया। घर पर भट्ट महाशय नहीं थे, इसलिए उसने उनकी तुकारी नामकी स्त्रीसे तैलके लिए प्रार्थना की। . तैलके कई घड़े उसके यहाँ भरे रक्खे थे। तुकारीने उनमेंसे एक घड़ा ले जानेको जिनदत्तसे कहा। जिनदत्त ऊपर जाकर एक घड़ा उठाकर लाने लगा। भाग्यसे सीढ़ियाँ उतरते समय पाँव फिसल जानेसे घड़ा उसके हाथासे छट पड़ा। घड़ा फट गया और तेल सब रेलम-ठेल हो गया। जिनदतको इसमे बहत भय हआ। उसने डरते-डरते घडे के फट जानेका हाल तुकारोसे कहा। तब तुकारीने दूसरा घड़ा ले आनेको कहा । उसे पहले घड़ेके फूट जानेका कुछ भी खयाल नहीं हुआ। सच है, सज्जनोंका हृदय समुद्रसे भो कहीं अधिक गम्भीर हुआ करता है। जिनदत्त दूसरा घड़ा लेकर आ रहा था। अबकी बार तैलसे चिकनी जगह पर पाँव पड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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