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________________ १९६ आराधना कथाकोश लालसा से एक-एक के विरुद्ध जान लेनेकी कोशिश करने लगे । रातको जब वे सब खानेको बैठे तो किसीने भोजनमें विष मिला दिया और उसे खाकर सबके सब परलोक सिधार गये । यहाँ तक कि जिसने विष मिलाया था, वह भी भ्रमसे उसे खाकर मर गया । उनमें एक सागरदत्त नामक वैश्यपुत्र बच गया । वह इसलिये कि उसे रात्रिमें खाने-पीनेकी प्रतिज्ञा थी । धनके लोभमें फँसनेसे एक साथ सबको मरा देखकर सागरदत्तको वड़ा वैराग्य हुआ । वह उस सब धनको वहीं छोड़-छाड़कर चल दिया और एक साधुके पास जाकर आप मुनि बन गया । रात्रिभुक्तत्यागवती सागरदत्तने संसारकी सब लीलाओंको दुःखकी कारण और जीवनको बिजलीकी तरह पलभर में नाश होनेवाला समझ सब धन वहीं पर पड़ा छोड़कर आप एक ऊँचे आचरणका धारक साधु हो गया । वह सागरदत्त मुनि आप सज्जनों का कल्याण करें । ४१. धनके लोभ से भ्रम में पड़े कुबेरदत्त की कथा जिनेन्द्र भगवान्को, जो कि सारे संसार द्वारा पूज्य हैं, और सबसे उत्तम गिनी जानेवाली जिनवाणीको तथा गुरुओंको भक्तिपूर्वक नमस्कार कर परिग्रहके सम्बन्धकी कथा लिखी जाती है । मणिवत देशमें मणिवत हो नामका एक शहर था । उसके राजाका नाम भी मणिवत था | मणिवतकी रानी पृथिवीमति थी । इसके मणिचन्द्र नामका एक पुत्र था । मणिवत विद्वान् बुद्धिवान् और अच्छा शूरवीर था । राजकाजमें उसकी बहुत अच्छी गति थी । राजा पुण्योदयसे राजकाज योग्यताके साथ चलाते हुए सुखसे अपना समय बिताते थे । धर्म पर उनकी पूरी श्रद्धा थी । वे सुपात्रोंको प्रतिदिन दान देते, भगवान्की पूजा करते और दूसरोंकी भलाई करने में भरसक यत्न करते । एक दिन रानी पृथिवीमति महाराजके बालोंको सँवार रहो थीं कि उनकी नजर एक सफेद बाल पर पड़ी। रानीने उसे निकालकर राजाके हाथमें रख दिया। राजा उस सफेद बालको कालका भेजा दूत For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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