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________________ कडारपिंगकी कथा १६१ कीजिये । अपने राजमंत्रीकी एक अभूतपूर्व बात सुनकर राजा तो पक्षियोंको मँगानेको अकुला उठे । भला, ऐसी आश्चर्य उपजानेवाली बात सुनकर किसे ऐसी अपूर्व वस्तुको चाह न होगी ? और इसीलिए महाराजने मंत्रीकी बातोंपर कुछ विचार न किया। उन्होंने उसी समय कुबेरदत्तको बुलवाया और सब बात समझाकर उसे रत्नद्वीप जाने को कहा। बेचारा कुबेरदत्त इस कपट-जालको कुछ न समझ सका । वह राजाज्ञा पाकर घर पर आया और रत्नद्वोप जानेका हाल उसने अपनी विदुषी प्रियासे कहा । सुनते ही प्रियंगुसुन्दरीके मनमें कुछ खटका पैदा हुआ। उसने कहा-नाथ, जरूर कुछ दालमें काला है। आप ठगे गये हो । किंजल्क पक्षीकी बात बिल्कूल असंभव है। भला, कहीं पक्षियोंका भी ऐसा प्रभाव हुआ है ? तब क्या रत्नद्वीपमें कोई मरता ही न होगा? बिल्कुल झूठ ! अपने राजा सरलस्वभावके हैं सो जान पड़ता है वे भी किसीके चक्रमें आ गये हैं। मुझे जान पड़ता है, यह कारस्तानी राजमंत्रीकी की हुई है। उसका पुत्र कडारपिंग महा व्यभिचारी है। उसने मुझे एक दिन मन्दिर जाते समय देख लिया था । मैं उसकी पापभरी दृष्टिको उसी समय पहचान गई थी। मैं जितना ही ध्यानसे इस बात पर विचार करती है तो अधिक अधिक विश्वास होता जाता है कि इस षड्यंत्रके रचनेसे मंत्री महाशयकी मंशा बहुत बुरी है । उन्होंने अपने पुत्रकी आशा पूरी करनेका और कोई उपाय न खोज पाकर आपको विदेश भेजना चाहा है। इसलिए अब आप यह करें कि यहाँसे तो आप रवाना हो जायें, जिससे कि किसीको सन्देह न हो और रात होते ही जहाजको आगे जाने देकर आप वापिस लौट आइये। फिर देखिये कि क्या गुल खिलता है । यदि मेरा अनुमान ठीक निकले तब तो फिर आपके जाने की कोई आवश्यकता नहीं और नहीं तो दश-पन्द्रह दिन बाद चले जाइयेगा। प्रियंगुसुन्दरीकी बुद्धिमानी देखकर कुबेरदत्त बहुत खुश हुआ। उसने उसके कहे अनुसार ही किया। जहाज रवाना हो गया। जब रात हुई तन कुबेरदत्त चुपचाप घर पर आकर छुप रहा । सच है, कभी-कभी दुर्जनोंकी संगतिसे सत्पुरुषोंको भी वैसा ही हो जाना पड़ता है। जब यह खबर कडारपिंगके कानोंमें पहुंची कि कुबेरदत्त रत्नद्वीपके लिए रवाना हो गया तो उसकी प्रसन्नताका कुछ ठिकाना न रहा । वह जिस दिनके लिए तरस रहा था, बेचैन हो रहा था वही दिन उसके लिए जब उपस्थित हो गया तब वह क्यों न प्रसन्न होगा ? प्रियंगुसुन्दरीके रूप का भूखा और कामसे उन्मत्त वह पापी कडारपिय बड़ी आया और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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