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________________ १६० आराधना कथाकोश धर्मात्मा और पूजा, प्रभावना करनेवाला था। इसकी खो प्रियंगसुन्दरी सरल स्वभावकी, पुण्यवती और बहुत सुन्दरी थी। एक दिन कडारपिंगने प्रियंगुसुन्दरीको कहीं जाते देख लिया। उसकी रूप-मधुरिमाको देखकर इसका मन बेचैन हो उठा । यह जिधर देखता उधर ही इसे प्रियंगसुन्दरी दिखने लगी। प्रियंगुसुन्दरीके सिवा इसे और कोई वस्तू अच्छी न लगने लगी। कामने इसे आपेसे भुला दिया। बड़ी कठिनतासे उस दिन यह घरपर पहुँच पाया । इसे इस तरह बेचैन और भ्रम-बुद्धि देखकर इसकी माँको बड़ी चिन्ता हुई। उसने इससे पूछाकडार, क्यों आज एकाएक तेरी यह दशा हो गई ? अभी तो त घरसे अच्छी तरह गया था और थोड़ी ही देरमें तेरी यह हालत कैसे हुई ? बतला तो, हुआ क्या ? क्यों तेरा मन आज इतना खेदित हो रहा है ? कडारपिंगने कुछ न सोचा-विचारा, अथवा यों कह लीजिए कि सोच विचार करनेको बुद्धि ही उसमें न थी। यही कारण था कि उसने, कौन पूछनेवाली है, इसका भी कुछ खयाल न कर कह दिया कि कुबेरदत्त सेठको स्त्रोको में यदि किसी तरह प्राप्त कर सकू, तो मेरा जीना हो सकता है। सिवा इसके मेरी मृत्यु अवश्यंभावी है । नीतिकार कहते हैं कि कामसे अन्धे हुए लोगोंको धिक्कार है जो लज्जा और भय रहित होकर फिर अच्छे और बुरे कार्यको भी नहीं सोचते। बेचारी धनश्री पुत्रकी यह निर्लज्जता देखकर दंग रह गई । वह इसका कुछ उत्तर न देकर सीधी अपने स्वामीके पास गई और पुत्रकी सब हालत उसने उनसे कह सुनाई। सुमति एक राजमंत्री था और बुद्धिमान् था। उसे उचित था कि वह अपने पुत्रको पापकी ओरसे हटानेका यत्न करता, पर उसने इस डरसे, कि कहीं पुत्र मर न जाय, उलटा पापकार्यका सहायक बनने में अपना हाथ बटाया । सच है, विनाशकाल जब आता है तब बुद्धि भी विपरीत हो जाया करती है। ठीक यही हाल सुमतिका हुआ । वह पुत्रकी आशा पूरी करनेके लिए एक कपट-जाल रचकर राजाके पास गया और बोला-महाराज, रत्नद्वीपमें एक किंजल्क जातिके पक्षी होते हैं, वे जिस शहर में रहते हैं वहाँ महामारी, दुर्भिक्ष, रोग, अपमृत्यु आदि नहीं होते तथा उस शहर पर शत्रुओंका चक्र नहीं चल पाता, और न चोर वगैरह उसे किसी प्रकारकी हानि पहुंचा सकते हैं । और महाराज, उनकी प्राप्तिका भी उपाय सहज है । अपने शहरमें जो कुबेरदत्त सेठ हैं। उनका जाना आना प्रायः वहाँ हुआ करता है और वे हैं भो कार्यचतुर, इसलिए उन पक्षियोंके लानेको आप उन्हें आज्ञाः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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