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________________ १६२ आराधना कथाकोश उत्सुकतासे कुबेरदत्तके घर पर आया। प्रियंगुसुन्दरीने इसके पहले ही उसके स्वागतको तैयारोके लिए पाखाना जानेके कमरेको साफ-सुथरा करवाकर और उसमें बिना निवारका एक पलंग बिछवाकर उस पर एक चादर डलवा दी थी। जैसे ही मन्द-मन्द मुसकाते हुए कुंवर कडारपिंग आये, उन्हें प्रियंगुसुन्दरी उस कमरे में लिवा ले गई और पलंगपर बैठनेका उनसे उसने इशारा किया । कडारपिंग प्रियंगुसुन्दरीको अपना इस प्रकार स्वागत करते देखकर, जिसका कि उसे स्वप्नमें भी खयाल नहीं था, फूलकर कुप्पा हो गया । वह समझने लगा, स्वर्ग अब थोड़ा हो ऊँचा रह गया है । पर उसे यह विचार भी न हुआ कि पापका फल बहुत बुरा होता है। खुशीमें आकर प्रियंगुसुन्दरीके इशारेके साथ ही जैसे ही वह पलंगपर बैठा कि धड़ामसे नीचे जा गिरा । जब वहाँकी भीषण दुर्गन्धने उसकी नाकमें प्रवेश किया तब उसे भान हुआ कि मैं कैसे अच्छे स्थान पर आया हूँ। वह अपनी करनी पर बहुत पछताया, उसने बहुत आजू-मिन्नत अपने छुटकारा पानेके लिए की, पर उसकी इस आजिजी पर ध्यान देना प्रियंगु. सुन्दरीको नहीं भाया। उसने उसे पापकर्मका उपयुक्त प्रायश्चित दिये बिना छोड़ना उचित नहीं समझा। नारकी जैसे नरकोंमें पड़कर दुःख उठाते हैं, ठीक वैसे ही एक राजमंत्रीका पुत्र अपनो सब मान-मर्यादा पर पानी फेरकर अपने किये कर्मोका फल आज पाखानेमें पड़ा-पड़ा भोग रहा है । इस तरह कष्ट उठाते-उठाते पूरे छह महीने बीत गये। इतनेमें कुबेरदत्तका जहाज भी रत्नद्वीपसे लौट आया। जहाजका आना सुनकर सारे शहरमें इस बातका शोर मच गया कि सेठ कुबेरदत्त किंजल्क पक्षी ले आये। इधर कुबेरदत्तने कडारपिंगको बाहर निकाल कर उसे अनेक प्रकारके पक्षियोंके पाँखोंसे खूब सजाया और काला मुंह करके उसे एक विचित्र ही जीव बना दिया। इसके बाद उसने कडारपिंगके हाथ-पाँव बाँध कर और उसे एक लोहेके पिंजरे में बन्दकर राजाके सामने ला उपस्थित किया। पश्चात् कुबेरदत्तने मुसकुराते हुए यह कहकर, कि देव, यह आपका मँगाया किंजल्क पक्षी उपस्थित है, यथार्थ हाल राजासे कह दिया। सच्चा हाल जानकर राजाको मंत्रो पुत्र पर बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने उसी समय उसे गधे पर बैठाकर और सारे शहरमें घुमा-फिराकर उसके मार डालनेकी आज्ञा दे दी । वही किया भी गया। कडारपिंगको अपनी करनीका फल मिल गया। वह बड़े खोटे परिणामोंसे मर कर नरक गया। सच है, परस्त्रोआसक्त पुरुषको नियमसे दुर्गति होती है। इसके विपरीत जो भव्य-पुरुष जिनभगवानके उपदेश किये और सुखोंके देनेवाले शीलवत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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