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________________ मृगसेन धोवरको कथा १३९ प्रकार धनकोति पुण्यके प्रभावसे अनेक बड़ी-बड़ी आपत्तियोंसे भी सुरक्षित रहकर सुखपूर्वक जीवनयापन करने लगा। जब महाराज विश्वम्भरको धनकोतिके पुण्य, उसको प्रतिष्ठा तथा गुणशालीनताका परिचय मिला तो वे उससे बहत खुश हुए और उन्होंने अपनी राजकुमारीका विवाह भी शम दिन देखकर बड़े ठाटबाट सहित उसके साथ कर दिया । धनकीतिको उन्होंने दहेजमें बहुत धन सम्पत्ति दी, उसका खूब सम्मान किया तथा 'राज्य सेठ' के पद पर भी उसे प्रतिष्ठित किया। इस पर किसीको आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि संसारमें ऐसी कोई शुभ वस्तु नहीं जो जिनधर्मके प्रभावसे प्राप्त न होती हो। गुणपालको जब अपने पुत्रका हाल ज्ञात हुआ तो उसे बड़ो प्रसन्नता हुई । वह उसी समय कौशाम्बीसे उज्जयिनोके लिए चला और बहुत शीघ्र अपने पुत्रसे आ मिला । सबका फिर पुण्यमिलाप हुआ। धनकोर्ति पुण्योदयसे प्राप्त हुए भोगोंको भोगता हआ अपना समय सुखसे बिताने लगा। इससे कोई यह न समझ ले कि वह अब दिनरात विषयभोगोंमें ही फंसा रहता है, नहीं; उसका अपने आत्मकल्याणको ओर भी पूरा ध्यान है। वह बड़ी सावधानोके साथ सुख देने वाले जिनधर्मको सेवा करता है, भगवान् की प्रतिदिन पूजा करता है, पात्रों को दान देता है, दुःखी-अनाथोंकी सहायता करता है और सदा स्वाध्यायाध्ययन करता है। मतलब यह कि धर्म-सेवा और परोपकार करना हो उसके जोयनका एक मात्र लक्ष्य हो गया है । पुण्यके उदयसे जो प्राप्त होना चाहिए वह सब धनकोतिको इस समय प्राप्त है । इस प्रकार धनकोतिने बहुत दिनों तक खूब सुख भोगा और सबको प्रसन्न रखनेकी वह सदा चेष्टा करता रहा। एक दिन धनकीतिका पिता गुणपाल सेठ अपनी स्त्रो, पुत्र, मित्र, बन्धु बान्धवको साथ लिए यशोध्वज मनिराजको वन्दना करनेको गया । भाग्यसे अनंगसेना भी इस समय पहुँच गई । संसारका उपकार करनेवाले उन मुनिराजकी सभी ने बड़ी भक्तिके साथ वन्दना को। इसके बाद गुणपालने मुनिराजसे पूछा-प्रभो, कृपाकर बतलाइए कि मेरे इस धनकोति पुत्रने ऐसा कौन महापुण्य पूर्व जन्ममें किया है, जिससे इसने इस बालपनमें ही भयंकरसे भयंकर कष्टों पर विजय प्राप्त कर बहुत कत्ति कमाई, खब धन कमाया, और अच्छे-अच्छे पवित्र काम किये, सुख भोगा, और यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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