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________________ आराधना कथाकोश २९. यम मुनिकी कथा मैं देव, गुरु और जिनवाणीको नमस्कार कर यम मुनिकी कथा लिखता हूँ, जिन्होंने बहुत ही थोड़ा ज्ञान होनेपर भी अपनेको मुक्तिका पात्र बना लिया और अन्त में वे मोक्ष गये । यह कथा सब सुखकी देनेवाली है । ११८ उड्रदेशके अन्तर्गत एक धर्म नामका प्रसिद्ध और सुन्दर शहर है । उसके राजा थे यम । वे बुद्धिमान और शास्त्रज्ञ थे । उनको रानीका नाम धनवती था । धनवतीके एक पुत्र और एक पुत्री थी। उनके नाम थे गर्दभ और कणिका । कोणिका बहुत सुन्दरी थी । धनवतीके अतिरिक्त राजक और भी कई रानियाँ थीं । उनके पुत्रोंकी संख्या पाँचसौ थी । ये पाँचसौ ही भाई धर्मात्मा थे और संसारसे उदासीन रहा करते थे । राजमंत्री का नाम था दीर्घ । वह बहुत बुद्धिमान् और राजनीतिका अच्छा जानकार था । राजा इन सब साधनोंसे बहुत सुखो थे और अपना राज्य भी बड़ी शान्ति से करते थे । I एक दिन एक राज ज्योतिषीने कोणिकाके लक्षण वगैरह देखकर राजासे कहा - महाराज, राजकुमारी बड़ी भाग्यवती है। जो इसका पति होगा वह सारी पृथ्वीका स्वामी होगा । यह सुनकर राजा बहुत खुश हुए और उस दिन से वे उसकी बड़ी सावधानीसे रक्षा करने लगे, उन्होंने उसके लिये एक बहुत सुन्दर और भव्य तलग्रह बनवा दिया । वह इसलिये कि उसे और छोटा-मोटा बलवान् राजा न देख पाये । एक दिन उसको राजधानी में पाँचसौ मुनियोंका संघ आया । संघके आचार्य थे महामुनि सुधर्माचार्य । संसारका हित करना उनका एक मात्र व्रत था। बड़े आनन्द उत्साहके साथ शहर के सब लोग अनेक प्रकारके पूजन द्रव्य हाथोंमें लिये हुए आचार्यकी पूजा के लिये गये। उन्हें जाते हुए देख राजा भा अपने पाण्डित्य के अभिमान में आकर मुनियोंकी निन्दा करते हुए उनके पास गये। मुनि निन्दा और ज्ञानका अभिमान करनेसे उसी समय उनके कोई ऐसा कर्मोंका तीव्र उदय आया कि उनकी सब बुद्धि नष्ट हो गई । वे महामूर्ख बन गये। इसलिये जो उत्तम पुरुष हैं और ज्ञानी बनना चाहते हैं, उन्हें उचित है कि वे कभी ज्ञानका गर्व न करें और ज्ञानहीका क्यों ? किन्तु कुल, जाति, बल, ऋद्धि, ऐश्वर्य, शरीर, तप, पूजा, प्रतिष्ठा आदि किसोका भो गर्व, अभिमान न करें। इनका अभिमान करना बड़ा दुःखदायो है | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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