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________________ पंचनमस्कार मंत्र - माहात्म्य कथा ११७ यह सब उसके अखण्ड शीलव्रतका प्रभाव था । ऐसे कष्टके समय देवोंने आकर उसकी रक्षा की और स्तुति की कि सुदर्शन, तुम धन्य हो, तुम सच्चे जिन्वत हो, सच्चे श्रावक हो, तुम्हारा ब्रह्मचर्य अखण्ड है, तुम्हारा हृदय मे भी कहीं अधिक निश्चल है । इस प्रकार प्रशंसा कर देवोंने उसपर सुगन्धित फूलोंकी वर्षा की और धर्मप्रेमके वश होकर उसकी पूजा की । सच है - अहो पुण्यवतां पुंसां कष्टं चापि सुखायते । तस्माद्भव्यैः प्रयत्नेन कार्यं पुण्यं जिनोदितम् । ब्रह्म नेमिदत्त अर्थात् - पुण्यवानोंके लिये दुःख भी सुखके रूपमें परिणत हो जाता है । इसलिये भव्य पुरुषोंको जिनभगवान् के कहे मार्गसे पुण्यकर्म करना चाहिये | भक्तिपूर्वक जिनभगवान् की पूजा करना, पात्रोंको दान देना, ब्रह्मचर्य का पालना, अणुव्रतों का पालन करना, अनाथ, अपाहिज दुखियों को सहायता देना, विद्यालय, पाठशाला खुलवाना, उनमें सहायता देना, विद्यार्थियोंको छात्रवृत्तियाँ देना आदि पुण्यकर्म हैं । सुदर्शनके व्रतमाहात्म्यका हाल महाराजको मालूम हुआ । वे उसी समय सुदर्शनके पास आये और उन्होंने उससे अपने अविचार के लिये क्षमा माँगी । सुदर्शनको संसारकी इस लीलासे बड़ा वैराग्य हुआ । वह अपना कारोबार सब सुकान्त पुत्रको सौंपकर वनमें गया और त्रिलोकपूज्य विमलवाहन मुनिराजको नमस्कार कर उनके पास प्रव्रजित हो गया । मुनि होकर सुदर्शनने दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपश्चर्या द्वारा घातिया कर्मोंका नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया और अनेक भव्य पुरुषों को कल्याणका मार्ग दिखलाकर तथा देवादि द्वारा पूज्य होकर अन्तमें वह निरावाध, अनन्त सुखमय मोक्षधाम में पहुँच गया । इस प्रकार नमस्कार मंत्रका माहात्म्य जानकर भव्योंको उचित है कि वे प्रसन्नता के साथ उसपर विश्वास करें और प्रतिदिन उसकी आराधना करें। धर्मात्माओंके नेत्ररूपी कुमुद- पुष्पों के प्रफुल्लित करनेवाले, आनन्द देनेवाले और श्रुतज्ञानके समुद्र तथा मुनि, देव, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि द्वारा पूज्य, केवलज्ञानरूपी कान्तिसे शोभायमान भगवान् जिनचन्द्र संसार में सदा काल रहें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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