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________________ ११६ आराधना कथाकोश गई। वह कामसे तो अत्यन्त पीड़ित थी ही, उसने सुदर्शनसे बहुत अनुनय विनय किया, इसलिये कि वह उसकी इच्छा पूरी करके उसे सुखी करे, कामाग्नि से जलते हुए शरीरको आलिंगनसुधा प्रदान कर शीतल करें । पर सुदर्शनने उसकी एक भी बातका उत्तर नहीं दिया। यह देख रानी ने उसके साथ अनेक प्रकारकी कुचेष्टायें करनी आरंभ की, जिससे वह विचलित हो जाय । पर तब भी रानीकी इच्छा पूरी नहीं हुई । सुदर्शन मेरुसा निश्चल और समुद्रसा गंभीर बना रहकर जिनभगवान्के चरणोंका ध्यान करने लगा। उसने प्रतिज्ञा की कि यदि मैं इस उपसर्गसे बच गया तो अब संसारमें न रहकर साधु हो जाऊँगा। प्रतिज्ञा कर वह काष्ठकी तरह निश्चल होकर ध्यान करने लगा। बहुत ठोक लिखा है सन्तः कष्टशतैश्चापि चारित्रान्न चलत्य हो। -ब्रह्म नेमिदत्त अर्थात्-सत्पुरुष सैकड़ों कष्ट सह लेते हैं, पर अपने व्रतसे कभी नहीं चलते । अनेक तरहका यत्न, अनेक कुचेष्टायें करनेपर भी जब रानी सुदर्शनको शीलशैलसे न गिरा सकी, उसे तिलभर भी विचलित नहीं कर सकी, तब शर्मिन्दा होकर उसने सुदर्शनको कष्ट देनेके लिये एक नया हो ढोंग रचा। उसने अपने शरीरको नखोंसे खूब खुजा डाला, अपने कपड़े फाड़ डाले, भूषण तोड़-फोड़ डाले और यह कहती हुई वह जार-जोरसे हिचकियाँ ले लेकर रोने लगी कि हाय ! इस पापी दुराचारीने मेरी यह हालत कर दी । मैंने तो इसे भाई समझकर अपने महल बुलाया था। मुझे क्या मालम था कि यह इतना दुष्ट होगा? हाय ! दौड़ो !! मुझे बचाओ ! मेरी रक्षा करो! यह पापी मेरा सर्वनाश करना चाहता है। रानीके चिल्लाते ही बहुतसे नौकर-चाकर दौड़े आये और सुदर्शनको बाँधकर वे महाराजके पास लिवा ले गये। सच है. किं न कुर्वन्ति पापिन्यो निद्यं दुष्टस्त्रियो भुवि । -ब्रह्म नेमिदत्त अर्थात्-पापिनी और दुष्ट स्त्रियाँ संसारमें कौन बुरा काम नहीं करती? अभया भी ऐसी हो स्त्रियों में एक थी। इसलिये उसने अपना चरित कर बतलाया । महाराजको जब यह हाल मालम हुआ, तो उन्होंने क्रोधमें आकर सुदर्शनको मार डालनेका हुकुम दे दिया । महाराजकी आज्ञा होते ही जल्लाद लोग उसे श्मशानमें लिवा ले गये। उनमें से एकने अपनी तेज तलवार सुदर्शनके गले पर दे मारी। पर यह हुआ क्या ? जो सुदर्शनको उससे कुछ कष्ट नहीं पहुंचा और उलटा उसे वह तलवारका मारना ऐसा जान पड़ा, मानो किसीने उसपर फूलको माला फैकी हो । जान पड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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